hindi fiction vocabulary Flashcards
expressions idiomatiques
Rajjo Kamri
मैंने बिस्तर पर करवट बदल कर खिड़की के बाहर झाँका तो देखा…
एक कप स्ट्राँग कॉफी पीने की जबरदस्त इच्छा हो रही थी पर खुद बनाने की हिम्मत नहीं थी।
मैंने खुद से कहा।
मैं सोचने लगा कि इन सात सालों में क्या से क्या हो गया।
मेरे पिताजी बहुत सख्त थे।
हम सब साथ-साथ ही रहते थे।
मैंने कंप्यूटर्स और फायनेन्स की परीक्षा दी और अच्छे मार्क्स से पास हो गया।
दो दिन का सफ़र तय करके मैं मुंबई के मुंबई सेंट्रल स्टेशन पर उतरा।
स्टेशन के पास ही एक सस्ते होटल में मुझे एक कमरा किराये पर मिल गया।
उन्होंने मुझे ऊपर से नीचे तक परखने के बाद कहा, “अच्छा हुआ राज तुम टाईम पर आ गये।
मिस्टर महेश ने फोन नंबर मिलाया,
बदन भी मजबूत था।
एम-डी का केबिन मेरे होटल के रूम से चार गुना बड़ा था।
मैं जानता हूँ कि हम तुम्हें ज्यादा वेतन नहीं दे रहे पर तुम काम अच्छा करोगे तो तरक्की भी जल्दी हो जायेगी मिस्टर महेश की तरह।
मिस्टर महेश बोले, “आओ तुम्हें तुम्हारे स्टाफ से परिचय करा दूँ।”
मेरी तीनों असिस्टेंट्स देखने में बहुत ही सुंदर थीं।
मिसेज नीता, ३५ साल की शादी शुदा औरत थी।
नीता देखने में ज्यादा सुंदर थी और उसकी छातियाँ भी काफी भरी-भरी थी…
हम लोग जल्दी ही एक दूसरे से खुल गये थे और एक दूसरे को नाम से पुकारने लगे थे।
पाया। मैं अपनी रिपोर्ट लेकर एम-डी के केबिन में बढ़ा।
“सर! देख लीजिये अपने जैसे कहा था वैसे ही काम पूरा हो गया है।
“इस तरह काम करते रहो और देखो तुम कहाँ से कहाँ पहुँच जाते हो”, कहकर एम-डी ने मेरी पीठ थपथपायी।
होटल में रहते-रहते बोर होने लगा था,
“मेरी एक सहेली का फ्लैट खाली है. तुम चाहो तो देख सकते हो”, नीता ने कहा।
“अरे ये तो अच्छी बात है,
लेकिन मैं तुम्हें इतनी आसानी से जाने देने वाली नहीं हूँ,
ये सुन कर मैं थोड़ा चौंक गया।
तरक़्क़ी : promotion
नीता ये क्या कर रही हो, कहीं तुम पागल तो नहीं हो गयी हो। तुम्हारे पति को पता चलेगा तो वो क्या कहेंगे”, मैंने कहा।
“कुछ नहीं होगा राज, प्लीज़ मैं बहुत प्यासी हूँ, प्लीज़ मान जाओ”,
और वो मुझे बिस्तर पर घसीटने लगी
भगवान का नाम लेते हुए मैं उसके ऊपर चढ़ गया
मैंने जोर से धक्का लगाया
“राज जरा धीरे-धीरे करो”,
उसके ऊपर लेट कर मैं गहरी गहरी साँसें ले रहा था।
वो भी अपनी कमर हिलाने लगी और मेरे धक्के से धक्का मिलाने लगी।
वो उत्तेजना में चिल्ला रही थी।
उसकी चींखें सुन कर मैं भी जोर-जोर से धक्के लगा रहा था।
वो नीचे से अपनी कमर जोर जोर से उछाल रही थी,
मैं भी धक्के पे धक्के लगा रहा था।
मैं पलट कर उसके बगल में लेट गया।
“ओह राज! तुम शानदार मर्द हो।
वो भी अपनी कमर उछाल कर मेरा साथ देने लगी।
हमारी जाँघें एक दूसरे से टकरा रही थी।
मैंने निश्चय किया कि मैं और मेहनत के साथ कम करूँगा।
पता नहीं क्यों शबनम शक भरी नज़रों से नीता को देख रही थी।
मैं तो नीता का शुक्र गुज़ार हूँ कि उसने मेरी ये समस्या का हल कर दिया
वो मेरा बहुत ही खयाल रखने लगी जैसे एक पत्नी एक पति का रखती है।
मैंने अच्छी तरह से वेसलीन मल दी। वो बिस्तर पर घोड़ी बन चुकी थी और कहा,
वो दर्द से करहाते हुए बोली।
वो भी घोड़ी बनी हुई पूरा मज़ा ले रही थी, साथ ही अपनी चूत को अँगुली से चोद रही थी।
अब कौन से छेद को चोदना चाहोगे?”
मैंने दरवाजा खोला तो शबनम को वहाँ पर खड़े पाया।
मैंने उसे अंदर आने से रोकना चाहा पर वो मुझे धक्का देती हुई अंदर घुस गयी।
“अब समझी… तुम दोनों के बीच क्या चल रहा है, तो मेरा शक सही निकला।”
गयी, “तुम यहाँ पर क्यों आयी हो, हमारा मज़ा खराब करने?”
मैंने अपना लंड बाहर खींचा और जोर के झटके से अंदर डाल दिया।
वो निढाल पढ़ गयी।
दो धक्के मार कर उसे कस कर अपने से लिपटा कर
शौहर : husband, man
घसीटने : drag
वो निढाल पढ़ गयी। : sick of this
दो मिनट में ही झड़ जाता है
इतना कहकर वो मेरे हाथ को अपनी चूत पर दबाने लगी।
दरवाजे पर घंटी बजी।
उसके मुँह से सिसकरी निकल रही थी।
फ़िर आने का वादा कर के दोनों चली गयी।
“ठीक है जैसे तुम लोगों की मरज़ी।
“तुम समीना को क्यों नहीं बुला लेते,
“मुझे क्या नहीं मालूम, चलो साफ साफ बताओ कि बात क्या है”, मैंने कहा।
कंपनी में मुनाफा
गया। शुरू में तो वो सब काम संभालती थी
जब हम नये ऑफिस में शिफ़्ट हुए
“तुम्हारा मतलब है ये सब ऑफिस में होता है?” मैंने फ़िर सवाल किया।
मुझे घुरते देख नीता बोली, “शबनम इसे तब तक विश्वास नहीं आयेगा जब तक ये अपनी आँखों से नहीं देख लेगा।
वो इस जाल में कैसे फँसी।
अपनी गर्दन हिलाते हुए मैंने कहा,
“तुम तीनों बातें करो, तब तक मैं खाने का इंतज़ाम करके आता हूँ।”
“हमें पागल मत बनाओ,
“बाप रे! तुम्हें उसके बारे में भी पता है,
“नाराज़ मत हो, हम तेरा पीछा नहीं करते पर ऑफिस में क्या हो रहा इस बात की जानकारी जरूर रखते हैं”,
इस तरह मेरी दोनों भूख मिट जाती हैं।
बस तभी मैंने इस मैनेजर को देखा और उसे मैंने चोदने के लिये पटा लिया।
तो जाहिर है पैसे के लिये तो तुम नहीं आयी”, नीता ने पूछा।
तो जाहिर है पैसे के लिये तो तुम नहीं आयी”, नीता ने पूछा।
और अपने मियाँ को मिस करते हुए मैं अपनी चूत में अँगुली भी करने लगी थी।
“इसका मतलब तुम्हें चुदवाये बगैर जोब मिल गयी?” नीता ने पूछा।
और उस दिन दोनों ने मेरी खूब चुदाई की।”
तुम लोगों को होटल शेराटन के बारे में तो मालूम है ना?” समीना ने कहा। नीता और शबनम दोनों ने साथ में कहा, “हाँ मालूम है।”
अब तुम दोनों अपनी सैक्स लाइफ के बारे में बताओ जबकि महेश तुम लोगों को नहीं चोदता”,
“ना बाबा! मैं जैसी हूँ, ठीक हूँ”, समीना ने अपनी नज़रें झुकाते हुए कहा,
समीना के रोकने के बावजूद नीता ने मुझे आवाज़ लगायी,
बस तभी मैंने इस मैनेजर को देखा और उसे मैंने चोदने के लिये पटा लिया। : coax, bring round
मुझे इसी मौके का तो इंतज़ार था।
मैंने अपने कपड़े उतारे
मैंने समीना को बाँहों में भरते हुए…
समीना मेरे कानों में फुसफुसायी
दिये। हम दोनों की जीभ एक दूसरे से खेल रही थी। दोनों एक दूसरे की जीभ को मुँह में लेकर चूस रहे थे और शबनम ने समीना की साड़ी खोलनी शुरू कर दी
नीता ने झटके में उसका पेटीकोट भी खींच कर नीचे कर दिया।
हम दोनों खड़े खड़े एक दूसरे के बदन को सहला रहे थे।
मैंने समीना के घुटनों को मोड़ कर
“ओह राज अब और मत तड़पाओ, अब सहा नहीं जाता, जल्दी से अपना लंड मेरी चूत में डाल दो”, प्लीज़! समीना गिड़गिड़ाने लगी।
हम दोनों की साँसें तेज चल रही थी।
समीना ने ये कहकर एक बार फ़िर मुझे अपने ऊपर घसीट लिया।
जब तक नीता और शबनम लौटीं, हम लोग थक कर चूर हो चुके थे।
शबनम ये कह कर खाना लगाने लगी।
खाना खाने के बाद ड्रिंक्स का दौर चला और हम सब ने दो-दो पैग रम के पी लिये।
सुबह मैं तैयार होकर अपने केबिन में किसी सोच में डूबा था कि अचानक किसी की हँसी सुनकर मैंने नज़रें उठायीं तो तीनों को अपने सामने पाया।
कहूँ… ड्रिंक तो हम लोगों ने भी खूब की थी… हमें भी नशा चढ़ा हुआ था पर इतनी भी तो नहीं पीनी चाहिये कि बेहोश ही हो जाओ,
मैं आगे से ज्यादा ड्रिंक नहीं करूँगा, अब सब काम पर लग जाओ”,
उसने अपना वाक्य अधूरा छोड़ दिया।
समय मस्ती में कट रहा था।
करीब एक महीने बाद की बात है।
कैसे हमारा राज उस नयी लड़की के पीछे पड़ा हुआ है?”
फिर बाद में एक दूसरे का हाथ थामे पार्क में घूमते रहे।
वो शाम काफी सुहानी गुजरी थी।
मैं रजनी के चक्कर में ये भूल गया था कि नीता और शबनम आने वाली थी।
“सब्र से काम ले नीता,
राज को हक है वो अपनी उम्र वालों के साथ घूमे फ़िरे”,
समीना शरारत करते हुए बोली।
मैं और रजनी अब बराबर मिलने लगे।
तीनों लेडिज़ चिढ़ाने से बाज़ नहीं आती थी
गिड़गिड़ाने : entreat, urge
समीना शरारत करते हुए बोली। : said mischievously
तीनों लेडिज़ चिढ़ाने से बाज़ नहीं आती थी : couldn’t stop crying
जब सिनेमा हॉल में दाखिल होने जा रहे थे तो मुझे याद आया कि मैं टिकट तो घर पर ही भूल आया हूँ।
हम लोग मोटर-साइकल पर घर जा रहे थे कि जोरदार बारिश शुरू हो गयी।
मेरे फ्लैट तक पहुँचते हुए हम लोग काफी भीग चुके थे।
“क्या बात करते हो? तुम्हारे पास पायजामा सूट नहीं है क्या?” रजनी ने पूछा।
“हाँ है! पर वो बहुत बड़ा पड़ेगा तुम पर।”
थोड़ी देर में वो दरवाजे से झाँकती हुई बोली,
“राज ये तो बहुत छोटा इससे मेरी चू… मेरा मतलब ही कि पूरा शरीर नहीं ढक पायेगा।”
मैंने उसे बीच में ही टोक कर पूछा, “क्या तुमने पैंटी नहीं पहनी है क्या?”
सफ़ेद बाथरोब उसके शरीर से एकदम चिपका हुआ था।
“राज! अगर ब्रांडी मिल जाये तो ज़्यादा अच्छा रहेगा…” रजनी ने कहा।
उसने अपने होंठों पर जीभ फिराते हुए अपना चेहरा मेरी तरफ बढ़ाया।
कहीं कुछ गलत हो गया तो सब सत्यानाश हो जायेगा।
लगता है मेरा छूटने वाला है।”
हम दोनों काफी थक चुके थे।
जब मेरा मुरझाया लंड उसकी चूत से बाहर निकल आया तो मैंने उसकी बगल में लेट कर सिगरेट जला ली।
मेरा बाथरोब भी खून और पानी से सराबोर था।
थोड़ी देर में ही हम दोनों खलास हो गये।
अगर टाईम से घर नहीं पहुँची तो मम्मी को मुझपर विश्वास नहीं रहेगा”,
“देखा! मेरा शक ठीक निकला ना!
अगले दिन मैंने कुछ कंडोम खरीद लिये जिससे कोई खतरा ना हो।
उन्हें क्या मालूम कि मैं इस खेल में बहुत पुराना हो चुका हूँ। रात काफी हो चुकी थी। अपने दोस्तों से विदा ले मैं अपने कमरे की और बढ़ गया।
कमरे में पर्फयूम की सुगंध फैली हुई थी।
मेरे कदमों की आवाज़ सुन कर उसने अपना सिर उठाया।
अपना घूँघट हटा कर मुझे भी तुम्हारे रूप के दर्शन करने दो।”
कि मैं उसकी सुंदरता में खो गया।
प्रीती ने काफी ज्वेलरी पहन रखी थी। मैं एक-एक कर के उसके जेवर उतारने लगा।
कहकर मैंने उसे अपने बगल में लिटा दिया।
तुम्हारे बदन को परख रहा हूँ”,
“मुझे करने दो ना, आज हमारी सुहागरात है और सुहागरात का मतलब होता है दो शरीर और अत्मा का मिलन.
उसका नंगा बदन देख कर मुझसे रहा नहीं गया।
मेरा बाथरोब भी खून और पानी से सराबोर था। : wet, logged
मैं रुक गया और देखा कि दर्द के मारे उसकी आँखों से आँसू निकल पड़े थे।
थी। मुझे अपने आपको रोकना मुश्किल हो रहा था।
उसने कुछ जवाब नहीं दिया और अपनी टाँगें और जकड़ ली।
मेरे दोबारा कहने पर भी वो नहीं मानी
उसकी कुँवारी चूत को चोदने के खयाल से ही मैं उत्तेजना में भरा हुआ था,
उसे अपनी बाँहों में भरते हुए एक धीरे से धक्का लगाया जिससे मेरे लंड का सुपाड़ा उसकी चूत में जा घुसा।
“डार्लिंग थोड़ा दर्द होगा, सहन कर लेना”,
तुम आराम करो… मैं तब तक सबज़ियाँ और सामान लेकर आता हूँ”,
“जब इतना अच्छा खाना सामने हो तो ये खाना किसको खाने का दिल करेगा”,
वो खाना बनाने में लग गयी।
मुझे नहीं मालूम था कि ये गंदी आदत आपको भी है”,
मैंने अपना मुँह उसकी छातियों के बीच छुपा दिया
एक हाथ से उसके मम्मों को जोर से तो उसके मुँह से सिस्करी निकल पड़ती
एक हाथ से उसके मम्मों को जोर से भींचता तो उसके मुँह से सिस्करी निकल पड़ती
पर मुझसे भी रुका नहीं जा रहा था।
फिर भी हम एक दूसरे को उन्माद के मारे चूम रहे थे और सहला रहे थे।
तो… आज ही क्यों नहीं? हाँ शुरू में थोड़ा दर्द होगा पर बाद में मज़ा ही मज़ा आयेगा”,
उसकी चिल्लाहट पर ध्यान ना देते हुए
जो होगा देखा जायेगा।
उससे नज़रें बचाते हुए मैं अपनी ड्रिंक ले कर एक भीड़ में जा कर खड़ा हो गया जिससे वो कोई तमाशा ना खड़ा कर सके।
“डरो मत! मैं कोई तमाशा नहीं खड़ा करूँगी। क्या तुम अपनी पत्नी से नहीं मिलवाओगे?”
“मममम तुम्हारी बीवी काफी सुंदर है, इसलिये तुमने फटाफट शादी कर ली”,
“किसे??” एम-डी ने नज़रें घुमाते हुए कहा।
महेश ने ललचायी नज़रों से देखते हुए कहा।
मैं महेश की बतायी सीट पर बैठ गया।
है, उसका शरीर तो गज़ब का ही है”, एम-डी ने कहा।
“सर! मेरे काम और मेरी तरक्की के बीच में ये प्रीती कहाँ से आ गयी?” मैंने lहकलाते हुए पूछा।
मन तो कर रहा था कि उठकर इन दोनों की पिटायी कर दूँ। मेरी बीवी के बारे में ऐसी बातें करने का इन्हें क्या हक है, पर डर रहा था कि कहीं मैं अपनी तरक्की और नौकरी ना खो दूँ, इसलिये मैंने हल्के से ऐतराज़ दिखाते हुए कहा
हूँ”, मैंने ग्लास में से स्कॉच का बड़ा घूँट भरते हुए कहा।
उन्माद : craziness
है, उसका शरीर तो गज़ब का ही है : swell
मैंने lहकलाते हुए पूछा। : falteringly
मैं उसके ही सपने देखता हूँ।
तुम्हें अपनी बीवी को तैयार करते हुए उसे हम दोनों को सौंपना है।
मैंने अपना ग्लास एक ही झटके में खाइसे प्रीती को पिलाना, उसका दिमाग काम करना बंद कर देगा।”
“हम भी भगवान से डरने वालों में से हैं”
फिर तुम्हें तो उसकी चूत हासिल रहेगी ही।
अगर वो पतिव्रता है तो तुम्हारा हुक्म कभी नहीं टालेगी”
“महेश! तुमने राज को वो फोटो दिखाये कि नहीं?” कहकर एम-डी ने मेरी बात काटी।
“ठीक है! शनिवार की शाम हम तुम्हारे घर ड्रिंक्स लेने के बहाने आयेंगे, पर तुम्हारी बीवी का मज़ा लेंगे”,
मैंने उनसे विदा ली और इस दुविधा के साथ अपने घर पहुँचा कि अब प्रीती को कैसे तैयार करूँगा। ड्रिंक्स ज्यादा होने कि वजह से हमारी बात नहीं हो पायी और मैं सो गया।
लगते”, प्रीती ने नाराज़गी जाहिर की।
इसे प्रीती को पिलाना, उसका दिमाग काम करना बंद कर देगा।”
मैंने सब कुछ भगवान के सहारे छोड़ दिया।
थोड़ी देर में वो नाश्ते की प्लेट टेबल पर सजाने लगी।
नीचे झुकते वक्त उसकी साड़ी का पल्लू गिर गया और उसकी छाती की गहरायी दिखने लगी।
“राज! तुमने मेरे कोक में क्या मिलाया?” उसने अपनी हालत को संभालते हुए पूछा।
मैंने कमरे में आकर उन्हें इशारे से बताया कि प्रीती राज़ी हो गयी है।
लगे। दोनों ही बेसब्र नज़र आ रहे थे।
ठीक पाँच मिनट बाद प्रीती कमरे में दाखिल हुई।
मैं प्रीती को शराब पीते देख भौंचक्का रह गया क्योंकि उसे शराब से नफरत थी।
“अच्छा तुम दोनों हरामी आज मुझे चोदने आये हो!!
प्रीती की बात सुनकर एम-डी ने उसे खींच कर अपनी गोद में बिठा लिया और अपनी बाँहों में जकड़ लिया।
मेरे मन में जलान की भावना उठी,9
“अब मुझे चोदो, मुझसे रहा नहीं जा रहा।”
उसकी टाँगें चौड़ी कर के एम-डी ने अपना लंड प्रीती की चूत में घुसेड़ दिया।
“महेश क्या शानदार चूत है, काफी टाइट भी लग रही है”, प्रीती की चूत को निहारते हुए एम-डी बोला।
काफी दिलकश नज़ारा था। मैंने पहले कभी प्रीती का ये रूप नहीं देखा था।
“साले हरामी! एक बार बोला तो समझ में नहीं आता क्या?
ऐसे ही चोदते जाओ, मेरी चूत को रगड़ो….
प्रीती की बातों को अनसुना कर महेश अपना लंड उसकी गाँड के अंदर-बाहर कर रहा था।
अगर वो पतिव्रता है तो तुम्हारा हुक्म कभी नहीं टालेगी” :
virtuous wife
avert, avoid
दुविधा : indecision
“लाओ!!! मैं ये चादर बदल देता हूँ”,
सुबह मैंने देखा कि प्रीती हाथ में चाय का कप लिये मुझे उठा रही थी,
मैंने उसे काफी समझाने की कोशिश की पर मेरी हर कोशिश के बावजूद उसने मेरे साथ सोने से साफ इनकार कर दिया।
प्रीती ने शरारत भरी मुस्कान के साथ कहा।
प्रीती ने एक बदमाशी भरी मुस्कान के साथ जवाब दिया।
एक दिन शाम को महेश ने मुझे अपने केबिन में बुलाया और मेरी तरफ एक प्रिंटेड फोर्म बढ़ाते हुए कहा कि
मैंने खुश होते हुए फोर्म भर के दे दिया।
क्लब की परंपरा के अनुसार
हो सकता है मुझे लेट हो जाये।”
मैं काफी देर तक जागता रहा।
मैं आश्चर्य चकित था।
करूँगी। मैं जिससे जी चाहेगा चुदवाऊँगी और खुलेआम शराब सिगरेट पीयूँगी… तुम्हें मुझे टोकने का कोई हक नहीं है।”
अगर मुझे प्रीती को वापस पाना है तो उसे सब सच बताना ही पड़ेगा।
अब समझी मैं, राज! मैं तुम्हारा ये एहसान कभी नहीं भूलूँगी।”
“राज मैं चाहती हूँ कि आज तुम मुझे होटल शेराटन लेकर चलो,
अब वो म्यूज़िक पर थिरक रही थी।
प्रीती का अंदाज़ जरा ज्यादा ही निराला था।
मैं समझ गया वो नयी दुल्हन की तरह पेश आ रही थी
उसकी चूत पर अपनी जीभ फेरने लगा।
अगर तुम इसे चोदना चाहते हो तो इसकी कीमत देनी पड़ेगी,
“जब सब तय हो गया तो देर किस बात की है?” एम-डी ने पूछा।
“किसी बात की नहीं,
उसके कहने पर मैंने अपने और उसके लिये एक-एक सिगरेट सुलगा दीं।
मेरी नयी कार और फ्लैट की बहुत तारीफ कर रही थी।
वो दोनों सोच में पड़ गयी
अगले दिन तक मैं अपनी बहनों को घुमाता फिराता रहा,
प्रीती ने सिगरेट का धुँआ छोड़ते हुए जवाब दिया।
वो सिगरेट के कश लेते हुए धीरे-धीरे ड्रिंक सिप कर रही थी।
मैं चुपचाप बैठा अपने आप को कोस रहा था।
हैं? मैं फिर समझ गया कि इन सब में प्रीती का ही हाथ है।
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“जाओ जा कर कपड़े पहनो इसके पहले कि तुम्हारे भैया का सब्र टूटे और ये तुम्हें चोदने लगे।”
“इससे पहले कि मैं तुम दोनों की पिटायी करूँ,
“फिर मुझे ख्याल आया कि मुझे तुमसे बदला लेना है। मैं तुम्हें इतना जलील करना चाहती थी, जितना तुमने मुझे किया है।
“फिर एक दिन मुझे अंजू और मंजू का खत मिला।
मैंने देखा कि मेरे दोनों भाई तुम्हारी दोनों बहनों को बहुत ही घूर रहे थे।
“मैंने सब इंतज़ाम कर रखा था।
दोनों शरमा गयीं।”
कहकर अंजू ने अपना ग्लास एक ही झटके में खतम कर दिया।”
अंजू एक हाथ से अपनी चूत को रगड़ रही थी।
कहकर उसने श्याम को अपने और नज़दीक कर लिया
थे। थोड़ी देर में दोनों ने उनके ब्लाऊज़ के बटन खोल दिये थे और ब्रा ऊपर को खिसका दी थी।”
इसने अपनी टाँगें सिकोड़ रखी हैं।
उनकी चूत से पानी टपक रहा था।
मैंने अपने कपड़े फटफट उतार दिये
उन दोनों की फैली टाँगों के बीच उनकी गोरी चूत देख कर मेरे मन में एक ऑयडिया आया
“श्याम अब मुझे और मत तड़पाओ,
तुम्हारे भैया को सबक सिखाना चाहिये।
“क्या राम और श्याम को मालूम है कि अपने अपना बदला लेने के लिये हमें मोहरा बनाया है? अंजू ने पूछा।”
“ऐसे लगता है मंजू कि तुमने तो लौड़ा चूसने के लिये ही जन्म लिया है!
“लेकिन अब इन दोनों का यहाँ क्या काम है, क्या तुम्हारा इनसे मक्सद पूरा नहीं हुआ?” मैंने पूछा।
“चलो लड़कियों! अब नहा धो कर तैयार हो जाओ, तब तक मैं फोन करके पास के होटल से खाना मंगवा लेती हूँ,
“इतनी जल्दी भाभी? अभी तो बहुत वक्त पड़ा है,”
कहकर प्रीती मुझे घसीट कर बेडरूम में ले आयी।
नया केबिन पहले केबिन से बड़ा था और उसकी खासियत यह थी कि उसमें सोफ़ा-कम-बेड भी था।
मैं शक की निगाहों से उन्हें देखने लगा।
“ये अफ़वाह नहीं, हकीकत है राज!
मैंने आज की रात सबसे बेहतरीन लड़कियों को अपनी ऑफिस और ब्रन्च ऑफिस से चुना है…”
एम-डी का लंड जड़ तक उसकी चूत में समा चुका था।
अपने लंड को सहलाते हुए मैं अपने थूक से उसकी गाँड को चिकना कर रहा था।
थोड़े दिन बाद पिताजी की चिट्ठी आयी कि मैं अंजू और मंजू को वापस भेज दूँ।
मोहरा : vanguard
“मजाक मत करो, मैं उनकी हर बात जानना चाहती हूँ, जिससे उनकी कमजोरियों का पता चल सके,
मैंने उसे चोदा है पर वो हमारी शादी के पहले की बात है।”
जब तुम झूठ बोलते हो तो तुम्हारे चेहरे से पता चल जाता है।
एक लड़की मीना २२ साल की… जो अपना ग्रैजुयेशन कर रही है
मैंने हार नहीं मानी है, एक दिन भगवान हमारी मदद जरूर करेगा।”
“अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है,
करें”, कहकर महेश ने फोन पटक दिया।
“मेरा नसीब! राज तुमने मुझे पहले क्यों नहीं फोन किया?”
अब नौकरी से भी हाथ धो बैठोगे।”
कमरे में एक दम खामोशी छायी हुई थी।
महेश ने नशीली आवाज़ में कहा।
मैं महेश को सहारा देकर गाड़ी में बिठाने चला गया।
“तुम लोग मीना को क्यों सताते हो?”
“मैं इसमें कुछ गलत नहीं मानती,
तुम पैसों की तंगी की वजह से
तुम भी कमाल की औरत हो, कहाँ कहाँ से ढूँढ के लाती हो इतनी कुँवारी चूतों को?
“ये सब तुम्हारा किया धरा है…. तुम क्या ये सब मज़ाक समझती हो?”
मुझे आपको अपना अंकल कहते हुए भी
मुझे तो एम-डी पर दया आती है,
इसी तरह महीना गुजर गया। सब कुछ वैसे ही चल रहा था।
ठीक टाईम पर मैं सूईट में दाखिल हुआ तो क्या देखता हूँ कि एम-डी एकदम नंगा सोफ़े पर बैठा था,
एम-डी को बोलते सुन दोनों औरतें अपना नंगा बदन छुपाने के लिये सोफ़े के पीछे जा छुपीं।उनका सिर्फ़ चेहरा दिखायी दे रहा था।
मिसेज योगिता ने शरमा कर अपनी गर्दन झुका रखी थी।
“राज! तुम इन दोनों से पहले भी मिल चुके हो….. लेकिन फिर भी मैं इनसे तुम्हारा परिचय कराता हूँ।
“राज! मैंने तुम्हारी पत्नी और बहनों को चोदा है, आज मैं हिसाब बराबर कर देना चाहता हूँ।
उसकी आवाज से साफ ज़ाहिर था कि उसने शराब पी रखी थी।
“चलो अब बेडरूम में चलते हैं”,
आज से एम-डी तुम्हें अपने बराबर समझेगा….. नौकर नहीं।”
एक दिन मैं घर पहुँचा तो देखता हूँ कि रजनी और प्रीती शराब की चुस्कियाँ लेती हुई बातें कर रही हैं।
“कुछ दिनों से मैं देख रही थी कि मम्मी कुछ खोयी-खोयी सी रहती थी। अब ना तो वो पहले के जैसे हँसती थी और ना ही उनका काम में मन लगता था।
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मुझे सैक्स हमेशा चाहिये होता था, तुम्हारे पिताजी के मरने के बाद मैं अकेली पड़ गयी और मेरी सैक्स की भूख शाँत नहीं होती थी। एक दिन मेरी एक सहेली ने मुझे रबड़ का नकली लंड खरीद कर लाके दिया।”
“अभी नहीं बाद में, मम्मी बोली पर मैंने जोर दिया तो मम्मी बेडरूम से नकली लंड ले आयी….
प्रीती सिगरेट का धुँआ छोड़ती हुई रजनी से बोली।
“रजनी! तुम इसकी बातों पे मत जाना, मैं शर्त लगा सकती हूँ कि कुँवारी चूत की बात सुनते ही इसके लंड ने पानी छोड़ दिया होगा”,
और मुझे चुदाई, शराब सिगरेट की लत पड़ गयी…. खैर छोड़ो… तो ठीक है, रजनी!
है….. लेकिन मुझे शक है कि राज में ताकत बची होगी खुजली मिटाने की,
रजनी ने घर फोन लगाया और मैंने फोन का स्पीकर ऑन कर दिया जिससे उसकी बातें सुन सकें।
“कितनी मतलबी हो तुम! तुम्हें मेरा जरा भी खयाल नहीं आया?”
आधे घंटे में ही व्हिस्की और दवा ने अपना असर दिखाना शुरू किया।
अब वो अपनी चूत घिस रही थीं।
मैंने सेक्रेटरी के लिये पेपर में इश्तहार दे दिया।
मेरी बेटी आयेशा ने अभी सेक्रेटरी कोर्स का डिप्लोमा लिया है।
है! उसे सब अच्छी तरह समझा देना कि खूब मेहनत करनी पड़ेगी?
उसका इंटरव्यू लिया जायेगा?”
उसकी जाते ही मैंने एम-डी को इंटरकॉम पर फोन किया,
चिल्लाते हुए उसका बदन ढीला पड़ गया।
“सर! पक्का आपको कुछ और नहीं चाहिये?”
इतना कह कर मिली ने प्लेट योगिता की तरफ कर दी।
थोड़ी देर में दवाई और ड्रिंक्स ने अपना असर एक साथ दिखाना शुरू किया और उनके माथे पर पसीने की बूँदें छलकने लगी।
मैंने देखा कि दोनों अपनी चूत साड़ी के ऊपर से खुजा रही थी।
मतलबी : mean
घिस रही थीं : rub, grate
Karoghar
विपुल ने हवाई अड्डे के स्वागत हॉल में खड़े-खड़े ही काँच की ऊँची दीवारों के भीतर से बाहर झाँका।
है! दिल्ली में ही शिमला का आनंद मिल जाए तो कोई शिमला क्यों जाए!
पहली बार उसने चारु को जब देखा था, वह सर्दियों का ही कोई दिन था।
कहीं बारिश हो गई तो?
विमान दिल्ली हवाई अड्डे पर उतर भी नहीं पाएगा। ख़राब मौसम में अकसर विमान जयपुर या कहीं और आस-पास के हवाई-अड्डे पर ले जाया जाता है। कहीं और ले जाया गया तो?
विपुल ने फिर से नज़रें उठाकर देखा।
यही तो वह खूबसूरत नज़ारा है जिसे देखने लोग दूर-दूर से आते हैं, रिश्तेदारों का स्वागत तो एक बहाना बन जाता है।
साथ में यह अपूर्व दृश्य आनंद भी प्रदान कर रहा है।’
है।’ इसी सोच में हँसते-हँसते विपुल को याद आया कि अभी तक चारु का स्वागत करने को फूल भी नहीं लिए हैं उसने।
जब भी फुर्सत के क्षण पाती तो कॉलेज के माली से फूलों की नई-नई किस्मों के बारे में जानकारी एकत्र किया करती थी।
चारों तरफ़ निगाह दौड़ाई तो फूलवाला अधिक दूरी पर नहीं था।
वह बेहताशा गुलदस्ते के स्टॉल पर दौड़ा चला गया।
यह फूलवाला ज़रूर कोई पढ़ा-लिखा बेरोजगार होगा, जिसकी पढ़ाई-लिखाई ने उसे एयरपोर्ट जैसी शालीन आधुनिक जगह पहुँचाया है
फूलवाला गौर से निहारते विपुल को उलझन से देखते हुए बोला।
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कोई ट्रेन छूट रही है क्या?” विपुल ने उसे शांत करते हुए कहा।
“यहाँ ट्रेन नहीं, प्लेन छूटत हैं बाबू जी! दो घंटे से आप इसी हॉल में खड़े हो। अंदर-बाहर चहलकदमी कर रहे हो। तब याद नहीं रही गुलदस्ते की?
फूलवाला अपने ताज़े, सुकोमल फूलों पर पानी की बूँदे छिड़कता,
भाई! तनिक सब्र भी करो। कुछ सोचने भी तो दो।” मुख से तो ये शब्द निकले,
“अजी! जल्दी हमें नाहीं है। आपही को है।
विपुल ने ज़रा झुककर, कभी फूलवाले की आँखों में तो कभी बाहर की ओर झाँकते हुए हैरत से पूछा।
“अच्छा!” विपुल की आँखें अचरज से विस्तृत हो चलीं थीं।
एक हल्की सी व्यंग्य-भरी हँसी के साथ फूलवाला बोला।
एक क्षण को तो वह चुप हो गया फिर अपने विवश क्षणों से निकलता हुआ बोला, “आपने बताया नहीं बाबूजी कि कौन-से फूलों का गुलदस्ता दूँ?”
विपुल को विचारमग्न देख फूलवाले ने ही माहौल को हँसी के हलके रंग देने की कोशिश की,
वह अभी तक असमंजस की स्थिति से बाहर नहीं निकल पाया था।
फिर कुछ ढूँढता हुआ सा दुकान के कोने में इशारा करता हुए,
अगर तुम कह रहे हो तो सही ही होगा।
विपुल ने जेब से पैसे निकालकर दिए तो फूलवाला गुलदस्ता देते-देते रुका और गुलाबों के गुलदस्ते में एक नन्ही सी लाल कली भी जोड़ दी।
फूलवाला पूरे आश्वासन के साथ मुसकुराया और गुलदस्ता विपुल के हाथ में थमाते हुए गर्दन हिलाकार इशारे से ही समझा दिया कि लाल कली बहुत ज़रूरी है, यही तुम्हारे काम आएगी।
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फूलवाले को पैसे पकड़ाकर जेब से निकाले पर्स को वापिस जेब में रखते हुए बोला, “भैया! तुम अपने बच्चों को पढ़ाओ। स्कूल भेजो। पढ़ा-लिखाकर काबिल इंसान बनाओ।
फूलों पर पानी का छिड़काव करते हुए फूलवाला बोला।
विपुल ने काँच की दीवारों से ऐसे बाहर झाँका कि जैसे विमान की खिड़की से चारु की आँखें उसे ही तलाश रही होंगी।
लगभग एक घंटा फूल लिए बेचैनी से इधर-उधर टहलता रहा विपुल।
जब वह एयरपोर्ट से बाहर निकली तो चारों तरफ़ निगाहें दौड़ाती उसकी आँखें न जाने किसे तलाश रहीं थीं कि उसे सामने खड़ा विपुल दिखाई नहीं दिया। वह फुर्ती से कुछ खोजती हुई सी सामान की ट्रॉली को हथेली के ज़ोर से ठेलती हुई आगे निकल गई।
विपुल ने अब सामान की ट्रॉली उसके हाथ से लेकर खुद चलानी शुरु कर दी।
विपुल के कदम से कदम मिलाती चलती रही।
“कैसा रहा सफ़र? कोई तकलीफ़ तो नहीं हुई फ़्लाइट में?
सिर-विर फूटा तो नहीं न?” विपुल ने नहले पर दहला मारा और चारु के सिर पर हाथ घुमाकर चोट टटोलने का अभिनय करने लगा।
फिर दोनों हँस दिए।
एक चमक के साथ बिजली कड़की। चारु विपुल की ओट में आकर कड़कती बिजली से नज़रें बचाने लगी।
उसके। चारु का हाथ पकड़कर विपुल ने खींचा और इंतज़ार करती टैक्सी की ओर इशारा किया।
फिर आगे बढ़कर दरवाज़ा खोल ट्रॉली का सामान टैक्सी में रखकर चारु को पिछ्ली सीट पर बैठने का इशारा कर स्वयं भी पिछली सीट पर बैठते ही बोला,
तुम्हारा इतना मनोरंजन करूँगा कि तुम स्वयं कहोगी कि तुम ही काफ़ी हो विपुल, किसी और की ज़रूरत नहीं।”
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“सब को कोई न कोई काम आ गया?
मगर जैसे ही पता चला कि मैं चारु के स्वागत में चलने का प्रस्ताव रख रहा हूँ तो सबको ज़रूरी काम याद आ गए।
अब इन्हें उसी चारु से चिढ़ है।
कभी-कभी निगाह उठाकर विपुल की ओर देखती तो विपुल भी कहीं खोया-सा दिखाई पड़ रहा था।
‘क्या? तुम चारु से मिलने जा रहे हो? दिमाग़ तो ठिकाने पर है ना? तुम क्यों उस बदसूरत को इतना भाव दे रहे हो विपुल?
‘कौन कहाँ जाने लायक है, यह सोचना भी मुनासिब नहीं समझा। औकात तो देखो ज़रा। चाहे कोई उसकी शक्ल पर थूकना भी पसंद न करे।
करो! वो कोई राजकुमारी है क्या? बस भाई! हमें तो माफ़ करो। तुम्हें जाना है तो जाओ।’
है। जाओ, उसी का मज़ा लूटो।’ निक्षिप अभी अपनी बात खत्म भी न कर पाया था कि आक्रोश और आवेग से भरे विपुल के हाथ निक्षिप के गाल के बहुत नज़दीक पहुँचकर रुक गए।
“मार्च का महीना है, मगर ठंड अभी तक गई नहीं।
आगे कुछ कहने-बोलने की विपुल की हिम्मत ही नहीं हुई।
उसे तुम माँ की तरह पाल-पोस रही हो।
उसके बारे में कोई सवाल करना गुनाह के बराबर होगा।
“क्यों? तुम्हें ऐसा क्यों लगा?” चारु ने पलटकर पूछा।
ना। कचरे के डिब्बे में फेंक दिए क्या?
]चारु ने उपदेशात्मक अंदाज़ में कहा और
विपुल बुदबुदाकर रह गया।
चाय के साथ हलका नाश्ता ट्रे में विपुल के सामने पेश करने के बाद चारु ने अपना सूटकेस खोला
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विपुल तो जैसे गदगद हो उठा।
विपुल ने जाना चाहा तो चारु ने बारिश थमने तक रुक जाने को कहा।
नहीं तो मुझे बोला होता, मैं उसका ध्यान रख लेता।”
क्या मैं इन्हें साथ ले जा सकता हूँ? पढ़कर तुम्हें वापिस कर दूँगा।
बहुत सीखने को मिलेगा इनसे।” विपुल ने आग्रह किया।
जाने-अनजाने विपुल ने उसे प्यार से पुचकार कर अपने सीने से लगा लिया।
“तुम्हें याद है चारु, उस दिन मैं पहली बार तुम्हारी इच्छा के विरुद्ध तुम्हारे घर आया था।
तुम्हारी मकान-मालकिन बीमार थीं।
मेरे आश्चर्य की सीमा न रही।
एक आभारी मुस्कान उसके चेहरे पर खेल गई।
भाग्यशाली हूँ कि तुम्हारे जैसा मित्र मिला है।”
चारु कुछ न बोली। जी चाहता था उससे अभी कुछ और बात करे। नहीं जानती थी वह कि विपुल को रोके या जाने दे।
सड़क पर दूर-दूर तक कोई प्राणी नहीं।
“विपरीतार्थक…” कहकर चारु एक झटके से उठी और कक्षा से बाहर निकलकर न जाने किस मोड़ से किस गली में गुम हो गई।
अपना नाम बताने से भी कतराने लगी थी चारु।
यह अपमान उसने एक बार नही, दो बार नहीं, बार-बार झेला। घर जाकर वह ज़ार-ज़ार रोया करती।
अगली सुबह उसे कॉलेज पहुँचने को देरी हो गई। भागते-दौड़ते ‘सीनरी’ पहुँची।
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लापरवाही से अपनी मेज पर पुस्तक को सजाकर
चारु ने अपनी पुस्तक वापिस अपनी ओर खींच ली।
इसी खींचातानी में गोपाल सर ने कक्षा में प्रवेश किया और दोनों को झगड़ते पाया।
थोड़ी देर बाद उसे एहसास हुआ कि बाजू वाली मेज पर भी पुस्तक है यानि विपुल पुस्तक में से पढ़ रहा है।
किसकी बुक ली तुमने? कक्षा समाप्त होने पर वह पूछे बिना न रह पाई।
पत्रिका के पन्ने उलटते-पलटते एक दिन विपुल की नज़र एक लेख पर जा टिकी।
सभी छात्र-छात्राओं ने पिकनिक का प्रोग्राम बनाया तो समस्या थी कि कौन बिल्ली के गले में घंटी बाँधे
“तुम्हारा बहुत सम्मान करती हूँ।
चारु चाय बना लाई। दोनों चुपचाप चाय पीने लगे।
याद है वह दिन जब मैंने कैंटीन में चाय पीने का प्रस्ताव रखा और तुम भड़क उठीं थीं।”
“मेरा बटुआ यहीं छूट गया। वहाँ रखा होगा सामने मेज़ पर।”
आगे बढ़ अपना बटुआ उठाया और दरवाज़े की ओर लपका।
खूँटी पर टँगे तौलिए से शरीर सुखाते हुए
यह काम तुम्हें करना होगा, मेरी ख़ातिर।”
“कोशिश करूँगी। कहीं रिजेक्ट हो गया तो बहुत तकलीफ़ होगी।” आशंका ज़ाहिर की चारु ने।
आसमान में बिजली रह-रहकर कड़क रही थी।
कोई अगर ऊँची आवाज़ में चारु को डाँट भी देता तो भी खड़े-खड़े ही चारु का मूत्र निकल जाया करता था।
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रात के दो बजे होंगे। पेशाब का बहुत ज़ोर होने पर भी डर के मारे उसकी जाने की हिम्मत नहीं हुई
था। उसने बिना कुछ सोचे-समझे थोड़ी ज़ोर से आवाज़ निकाली- पापाSSSS… पापा तो अब भी नहीं उठे। पर ये क्या!
‘फिर बिस्तर गीला कर दिया होगा तूने।”
चारु के पिताजी के चारों तरफ़ खून का तालाब बना हुआ था। चारु भी उछलकर बैठ गई। उसकी भी चीख निकल गई और वह स्वयं खून में लथपथ माँ से चिपट गई और फफककर रोने लगी।
चीख-पुकार सुनकर अड़ोसी-पड़ोसी भी इकट्ठे हो गए।
तभी मरने वाले की आह तक नहीं निकली।
बहू और पति को उनके हाल पर छोड़ बच्चों की परवरिश में लग गई।
किसी पड़ोसी द्वारा पुलिस को इत्तला की गई।
सारा माजरा समझने-समझाने में पुलिस ने आधा घंटा से ज़्यादा का समय नहीं लगाया और माँ सुषमा और दादाजी को गिरफ़्तार कर ले गई।
मगर माँ अभी भी शक के दायरे में थीं।
सुभाष चौक से लेकर गाँधी चौक तक के मुख्य बाज़ार की निगरानी का जिम्मा प्रताप का ही था।
इतना सुनना था कि सुशीला चाची तुरंत अपना सामान बाँधकर घर के बाहर निकल गईं और प्रमोद चाचा को भी आवाज़ लगाकर घर के बाहर बुलाया और अपने साथ लेकर अगली बस पकड़कर देहरादून रवाना हो गईं।
दादी को उसपर खाना बनाना असुविधाजनक लगता था।
यद्यपि प्रताप के बैंक खाते में बहुत सा धन जमा था परंतु उस खाते से पैसे निकालने का अधिकार अब किसी को न रह गया था।
बाहर सब्ज़ीवाला आवाज़ लगा रहा था।
चारु और मंजु खेलते-खेलते रसोईघर में ही आ पहुँचीं।
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पहुँचीं। चारु रसोईघर के दरवाज़े के पीछे छुप गई, मंजु ने उसे ढूँढ निकाला और इसी खुशी में अपनी जीत और चारु की हार का संकेत देते हुए चारु को ज़ोर से धक्का दिया। चारु सीधा खौलते हुए दूध की कढ़ाहे के अंदर जा गिरी।
थे। आधी से अधिक जल चुकी चारु को ऑटोरिक्शा में डाल दादी तुरंत सरकारी अस्पताल की तरफ़ भागीं। प्राणांतक दर्द से छटपटाती चारु अब बेहोश हो चुकी थी।
उसके पूरे शरीर की त्वचा बुरी तरह जल गई थी। चेहरे से लेकर पैर तक खून में लिपटी झुलसी हुई चारु एक काले शव से अधिक कुछ नहीं लग रही थी।
आँखों के अलावा पूरा शरीर सफेद पट्टी से लिपटा था। वह पट्टी भी रक्त के धब्बों से दागदार हुई जाती थी। पूरे 48 घंटे निरीक्षण में रखने के बाद ही चिकित्सक भरोसे के साथ यह कह पाए कि चारु के बचने की संभावना है।
चारु बदल गई थी, बाहरी तौर पर और अंदरूनी तौर पर भी।
अपनी पत्नी सुशीला की आदतों को जानते हुए प्रमोद ने कहा, “शुक्र करो कि भयंकर हादसे में बच्ची की जान बच गई है।
ईश्वर न करे कहीं ऐसी कोई दुर्घटना हमारे घर हुई होती तो हम किसी को मुँह दिखाने के काबिल न रहते।” सुशीला के मुँह पर उस समय ताला लग गया।
चारु को रहने के लिए अलग कमरा मिला। कमरे में सुंदर सा पलंग, अलमारी, पढ़ने को कुर्सी-मेज़, खिलौने सब कुछ मिला,
चारु सुबह स्कूल जाती तो चाची सो रही होती। सुबह नौकर ही चाचा प्रमोद को नाश्ता बनाकर देता तो चारु का भी टिफ़िन बाँध दिया करता। दोपहर तीन बजे तक चारु घर लौटती तो चाची को दोपहर की नींद लेते हुए पाती। खाना बना हुआ रसोई में रखा हुआ होता जो चारु स्वयं गर्म करके खा लिया करती या फिर नौकर ही गर्म कर दिया करता।
तब भी बहुत सीमित सी बातचीत तीनों के बीच में होती।
लगती। उनका सारा ध्यान इस बात को सुनिश्चित करने में था कि चारु को किसी चीज़ की कमी न हो।
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चाची ने इस बात पर भी चारु को प्रत्यक्ष रूप से तो न डाँटा न कोसा ही
रात चाचा-चाची के कमरे से लड़ने-झगड़ने की आवाज़ें आती रही।
पड़ोस के मकान में एक अनुसूचित दलित जाति का परिवार रहता था।
बस में गुमसुम बैठी चारु कक्षा में पहुँचकर एक बार फिर खिलखिला उठती।
जाने कैसे हिम्मत जुटाकर वह अपने घर न जाकर पूजा के घर में दाखिल हो गई।
शिब्बू के बहुत अनुनय-विनय करने पर चारु अपने घर चली गई।
चारु के लिए बनाया गया दोपहर का खाना जब रोज़-रोज़
तो सुशीला नौकर चंदू पर बरस पड़ी।
दोपहर में मालकिन के सोने के बाद वह भी भरपूर नींद लिया करता था।
सुशीला ने सिर पीट लिया। दिल तो किया कि अभी मार-मार के चारु की चमड़ी उधेड़ दे।
अपनी समझ से तो चारु सोचती थी कि वह चाची की नज़रों से बच-बचाकर आ रही है।
चारु भी रसीली से गाना सीखने का आग्रह करती।
इसी तरह एक साल बीतने को आया। चारु अब दूसरी कक्षा की पढ़ाई पूरी कर चुकी थी।
प्रमोद अपनी सीट से उठ खड़े हुए।
सुशीला जड़ बैठी रही और चारु गाना समाप्त करने के बाद नीचे ज़मीन पर नज़रें गढ़ाए रही।
कार्यक्रम समाप्त होने पर पहली बार चारु का मुख चूमकर प्रमोद ने प्यार जताया।
चारु की खुशी का पारावार न रहा।
किए। आँसू रुक ही नहीं रहे थे तो गालों पर बह चुके आँसुओं को बाजू से साफ़ करने लगी।
चारु कुछ क्षणों के लिए खड़ी की खड़ी रह गई।
बरस पड़ी।
सुशीला जड़ बैठी रही : lazy
वह पूरे अधिकार से उस घर में प्रवेश कर गई।
अपने आँचल से उसके आँसुओं को सुखाया
जाए। उसे क्या पता था कि चाची और भड़क उठेगी।
वह तो एक दिन स्कूल से आई तो देखा कि पूजा के घर के सामने सामान से लदा ट्रक खड़ा है। उसमें से पलंग, सोफ़ा, टी.वी. फ़्रिज आदि सामान उतारकर पूजा के घर लाया जा रहा है।
पाई। चारु पाचवीं कक्षा में प्रथम आई थी।
पुलिस कोई ठोस सबूत अदालत में पेश नहीं कर पाई।
चारु माँ की दशा देख हैरान थी।
कमर झुकी सी।
किस तरह यह सिद्ध करुँ कि यह तुम्हारी ही संतान है।
प्रताप ने मेरा पता खोजबीन कर शादी का प्रस्ताव रखा।
और हमारे पास देने के लिए दान-दहेज था नहीं।
उसने रो-रोकर अपने बच्चे की कसमें खाकर प्रताप को यकीन दिलाया कि वह उनका ही बेटा है।
प्रताप ने बेटे की ख़ातिर एक बार फिर चम्पा को क्षमा कर दिया।
विपुल माथे पर हाथ रख नाटकीय अंदाज़ में बोला और ज़ोर का ठहाका लगाकर हँसा, “मज़ाक छोड़ो! मैं तुम्हें घर पहुँचाकर ही अपने घर जाऊँगा।”
“क्यों? किस कारण?” “अकेली लड़की को सुनसान रास्ते पर छोड़कर कैसे जा सकता हूँ?” मर्दानगी से तना वाक्य बहता हुआ आया। “लडकी को निरीह समझने वाली सोच से मुझे सख्त नफ़रत है।”
“वह मेरी समस्या है।” चारु नें आँखें तरेरीं।
“अगर मैं तुम्हें साथ लेकर निकला हूँ तो मेरी जिम्मेदारी बनती है कि
निरीह : innocent, submissive
“क्या मैं कुछ मदद करूँ?”
“किस काम में?”
हालाँकि पुरुष समाज द्वारा स्त्री की सुरक्षा का बीड़ा उठाया जाना मुझे बिल्कुल नापसंद है।
विपुल ने अपने घर की राह ली।
इस दलील के सामने चारु को झुकना पड़ा।
दी। मिश्राजी ने तुरंत मौके का फ़ायदा उठाते हुए चारु को बाथरूम खुद ले चलने पेशकश की।
चारु जाल में फँसी मछली सी तड़प रही थी।
अंदर से खुद को बाथरूम में बंद कर लिया।
जब 10 मिनट तक चारु बाथरूम से बाहर न निकली तो मिश्राजी ने खटखटाना शुरु कर दिया।
चारों तरफ़ भीड़ जमा हो गई थी।
सुशीला ने धीरज से काम लिया। चारु को कार की पिछली सीट पर लिटा सीधा अस्पताल का रुख किया। डॉक्टर ने पहले निरीक्षण में ही स्थापित कर दिया कि बच्ची बाल-उत्पीड़न का शिकार हुई है।
खीज। लगभग 24 घंटे देख-रेख में रखने के बाद चारु को अस्पताल से छुट्टी मिली।
चारु को घर लाया गया।
अब पछताने से कुछ हासिल होने वाला नहीं था। चारु के कमरे में कई बार वह उसका हाल पूछने गई। चारु तो जैसे जड़ हो गई थी।
बस में साथ जाने के कारण दोनों में बातचीत शुरु हो गई।
इसी तरह तीन वर्ष बीत चले थे। चारु को माँ और मंजु की याद बराबर सताती थी।
बड़ी बहन होने के नाते उसका भी कुछ दायित्व बनता है।
लगाई। दोनों बहनें एक-दूसरे के गले लग फूट-फूटकर रोईं।
दलील : argument
पेशकश : पेशकश
एक ही दर्द ने एक कर दिया था दोनों को।
हुई। कुछ दिनों में मंजु ने अपना सामान बाँधा और चारु के पास आ गई।
रखती। मंजु अब कुछ नरम पड़ गई थी।
तमतमाता हुआ कुर्सी से उठ खड़ा हुआ।
तुम्हें इस तरह की हरकत करते ज़रा भी शर्म नहीं आई?
चारु के साथ मंजु को न देख वह बेकल हो गया।
चारु ने फिर भी धैर्य से काम लिया और एक-एक कप कॉफ़ी के बाद चलने का प्रस्ताव रखा।
मैं अपनी जिंदगी जीना चाहता हूँ, बर्बाद करना नहीं।
चारु ठगी सी बैठी रह गई। उसे समझ न आया कि वहाँ बैठी रहे या उठकर चली जाए।
ऐसी नीच बात मैंने सोच भी कैसे ली?
कक्षा के बाद विपुल बाहर निकला तो चारु पीछे-पीछे चली आई। विपुल ने मुड़कर देखा। “क्या! आज जल्दी निकल आईं?” आँखें फाड़े विपुल ने चारु को घूरते हुए पूछा।
“मैं तुमसे कुछ बात करना चाहती हूँ।” हिम्मत जुटाती चारु बोली।
बिरला मंदिर के गार्डन में दोनों एक पेड़ के तने के सहारे बैठ गए।
विपुल का दिमाग़ चकरा रहा था कि आखिर चारु चाह क्या रही है।
था। वह जानता था कि कोई अनजाना डर चारु को सता रहा है।
पूरे मेडिकल कॉलेज में दसवें या आस-पास के रैंक पर रहतीं थीं।
एम.बी.बी.एस. के बाद दोनों की सगाई कर दी गई।
उचित समय देख दोनों का धूम-धाम से विवाह हो गया।
रखती। मंजु अब कुछ नरम पड़ गई थी।
सॉफ़्ट
यह सब काम करते-करते दोपहर हो गई। तब दोपहर के खाने का समय हो गया।
“फिर? आगे क्या हुआ?
वहाँ उनको डिप्रेशन से निकालने के लिए उनके घरवालों ने प्रैक्टिस शुरु करने की सलाह दी।
चारु की आवाज़ कठोर हो चली थी।
“इसमें उसके माता-पिता भी बराबर के गुनाहगार हैं।”
“तो तुम अब उससे वापिस मेल-जोल बढ़ा सकती हो। अगर चाहो तो! उसकी सगी बहन हो आखिर।”
फिरकर। ऐसी निराशाजनक बातें मत करो चारु।
तुम्हारे साथ कदम से कदम मिलाकर चलूँगा, तुम्हारी इच्छा-अनिच्छा का ध्यान रखूँगा,
अपनी राह स्वयं चुनती हो। अपने निर्णय खुद लेती हो।
तुम्हारे व्यक्तित्व पर नाज़ किया है मैंने।” तपाक से विपुल ने उत्तर दिया।
है। बार-बार लोगों की नफ़रत का शिकार हुई हूँ।”
मेरे हिसाब से यही खूबसूरती की निशानी है।”
विपुल अब खीज गया था।
“मुझे नहीं समझ आता कि इतनी खूबसूरत लड़कियाँ तुम्हारे आस-पास मंडराती हैं तुम उनमें से किसी को क्यों नहीं चुन लेते।” चारु अपनी बात पर अड़ी रही। “चुन लूँ? क्यों चुन लूँ? कोई सामान है क्या?” विपुल को क्रोध हो आया। “कोई तो कारण होगा नापसंद का।” चारु भी ढीठ थी। “वे मेरे योग्य नहीं।” झल्लाहट भरा जवाब था।
मेरे पास इसकी कोई दलील नहीं है कि मुझे तुमसे ही प्यार क्यों हुआ। बस हुआ तो हुआ।” विपुल हार मान चला था।
“लेकिन मेरे पास है विपुल। मैं तुम्हारे योग्य कदापि नहीं हूँ। इसलिए तुम्हारे प्रणय-निवेदन को स्वीकार नहीं कर सकती हूँ।
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विपुल की उदासी साफ़ झलक रही थी।
“इस तिरस्कार से ही तो मैं डरती हूँ विपुल। उसी से बचाने की कोशिश कर रही हूँ।” चारु गिड़गिड़ाने लगी थी।
बारह साल की उम्र में मैंने अपने माता-पिता दोनों को खो दिया। पिताजी की टी.बी. की बीमारी का पता चला तो माँ चिंता में दित-रात घुलने लगीं। पिताजी का बुखार टूटता न देख माँ टूट जाती थीं। रोज़ाना उनका वज़न घटता देख माँ घट-घट के आधी रह जाती थीं।
हालात यहाँ तक पहुँच गए कि इलाज के लिए पैसे न बचे।”
स्कूल से आकर मैं उन रज़ाई-गद्दों को साइकिल के कैरियर पर बाँधकर ग्राहकों के घर तक पहुँचाकर आता था।”
“जीवन हर कदम संघर्ष है।” “पिताजी का एक फेफड़ा पूरी तरह गल चुका था।
मैं पाँचवीं कक्षा की परीक्षा न दे पाया। बहुत पैसे उधार लेने पड़े- कुछ ग्राहकों से कुछ सप्लायरों से।
ऑपरेशन कामयाब रहा। कुछ दिनों में अस्पताल से छुट्टी मिली।
दिया। पिताजी ने देखा कि अस्थमा की मरीज़ माँ को रुई की मशीन चलते ही ज़ोर-ज़ोर से खाँसी आती है। यहाँ तक कि वे खाँसते-खाँसते बेहाल हो जातीं।
परंतु इन सबकी फ़िक्र न करते हुए पिताजी ने माँ को अस्पताल में दाखिल करा दिया।
पता चला कि उनकी दवाइयों का खर्चा उठाने में वे तो पहले ही बिक चुके थे। पिताजी की दवा की एक-एक गोली बहुत महँगी आती थी।
होश में आईं तो बच्चों की तरह-तरह बिलख-बिलखकर रोने लगीं।
पिताजी बुरी तरह उखड़ चुके थे।
था। मैं डर के मारे नीचे कूद पड़ा।
वे कहते कि तुम अच्छे घर के बच्चे हो। पढ़-लिखकर बड़े आदमी बनो।
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भी मेरी पढ़ाई अच्छी चलने लगी थी।
घर का सारा काम करने में मैं उस्ताद था ही।
छ: वर्षों में बारहवीं पास कर कॉलेज में दाखिला ले लिया। मैं कॉलेज के सहपाठी छात्रों से उम्र में काफ़ी बड़ा था। मैं उनसे दोस्ती नहीं कर पा रहा था। वे सब खुद को मुझसे दूर-दूर रखते थे।
थोड़ा-सा सकुचाते हुए उन्होंने स्वीकार कर लिया।
फिर आगे क्या हुआ?” चारु का कौतुहल बढ़ा।
“मैं नाकाम रहा था उसे समझने में। उस समय मुझे अपने पड़ोस में रहने वाली सीमा से बहुत लगाव था।
मेरे प्रेम को सीमा ने स्वीकृति दी तो मैं जैसे पंख लगाकर आसमान में उड़ चला।
था। सीमा पार्क के गेट पर मेरा इंतज़ार कर रही थी। मैं वहा पहुँचने ही वाला था कि एक ट्रक से टकरा गया। मोटरसाइकिल के साथ दूर तक खिचड़ता चला गया। सीधे हाथ के सहारे सड़क पर घिसटने से मेरे कंधे की हड्डी टूट गई।
आँख भी बाल-बाल बची। आँख के ज़रा ऊपर गहरा ज़ख्म हो गया, एक दाँत टूट गया। सीमा ने सब कुछ देखा और देखते-देखते घटनास्थल से लापता हो गई। मेरी कराहती आवाज़ उसे पुकारती रही।
“ईश्वर मुझे सबक सिखाना चाहता था शायद।
मेरे कंधे की चकनाचूर हड्डी को सहारा देने के लिए ऑर्थोपीडिएक रॉड डाली गई।
भैया मेरे सिर को अपनी गोद में लिए ऐसे रो रहे थे कि जैसे मैं दुनिया से चल बसा हूँ।
आँसुओं से भीगे चेहरे पर
मैं दर्द से छटपटा रहा था।
अगर इस दुर्घटना के बाद मैं न बचा होता तो उसका क्या होता?
“हाँ चारु, क्योंकि दूसरों को गलत ठहराना बहुत आसान है।
चल बसा : pass away
I “हाँ चारु, क्योंकि दूसरों को गलत ठहराना बहुत आसान है। : justify
भैया ने भी मेरे इस निर्णय की बहुत सराहना की।
“उफ! बहुत खेद हुआ विपुल। शायद बहुत आहत हुई होगी। तुम भी तो टूट गए होंगे।” “बस इतना ही नहीं चारु, ग्रेजुएशन के फाइनल में था जब एक और दुर्घटना घटी। शाम को किसी ग्राहक का सामान पहुँचाने मैं अपने भैया के साथ जा रहा था कि भैया ने टैम्पो का रुख उसी ओर कर दिया जहाँ वे मुझसे पहली बार मिले थे। उनकी वह जगह फिर से देखने की इच्छा थी।
उठा। सीने के दर्द के साथ ही पेट, हाथ और जबड़े में भी भयंकर दर्द हुआ। सिर में भी चक्कर आने लगा।
“फिर आगे क्या हुआ?” चारु की जिज्ञासा आशंका में ढल गई थी।
“हॉस्पिटल पहुँचकर उनकी हालत देख तुरंत आई.सी.यू. में भरती कर लिया गया। मेरी हज़ार प्रार्थनाओं और डॉक्टर की लाख कोशिशों के बावजूद वे मुझे फिर से अकेला कर इस दुनिया से रुख़सत हो गए।
चारु और विपुल तुरंत ऑटो में सवार हो निकले।
विपुल को उस पर प्रेम नहीं करुणा है।
क्या चारु वास्तव में शुभदा की माँ है?
शुभदा को पौधों पर पानी का छिड़काव करता हुआ पाता है।
है। दरवाज़े पर दस्तक देते-देते रुक जाता है। सीढ़ियाँ उतरकर शुभदा के पास पहुँचता है।
“ कहाँ खो गए भैया।” विपुल को विचारमग्न देख शुभदा ने पूछा।
उस हादसे के कुछ वर्षों बाद मिश्राजी को ऐड्स की बीमारी डायग्नोज़ हुई।
“हँ … दिल चाहता है कि तेरी बात पर पूरा विश्वास कर लूँ।” अविश्वास से भरी एक हुँकार सुनाई दी।
सहसा विपुल को याद आया।
बताते। शुभदा के सिर पर स्नेह से हाथ फेरा।
जिज्ञासा : curiosity
करुणा : compassion
शुभदा की छेड़खानी से बचना मुश्किल हो रहा था विपुल के लिए।
लगे। वहाँ मछली पकड़ते मछुआरों ने यह दृश्य देखा तो अविलम्ब पुलिस को सूचित किया।
शीघ्र ही पुलिस ने गोताखोरों के दल को बुला भेजा।
पुलिसकर्मी को इत्तला दी कि मैं पिकनिक वाले दस विद्यार्थियों में से नहीं हूँ। कृपया दो की तलाश जारी रखें। यह सुन पुलिस सकते में आ गई।
मुझे आत्महत्या के अपराध में दर्ज कर लेने की धमकी देकर वे तुरंत दो अन्य की खोज में लग गए।
प्राथमिक चिकित्सा दी गई। फिर हम नौ प्राणियों को तुरंत अम्बुलैंस के द्वारा अस्पताल ले जाया गया। उन आठ बालकों में से केवल पाँच को ही बचाया जा सका। तीन के फेफड़ों में बुरी तरह पानी भर चुका था।
इस घटना ने मुझे भीतर तक दहला दिया।
दो लापता बच्चों के माता-पिता का रो-रोकर बुरा हाल था।
उनकी माताएँ सिर पटक-पटककर बेहाल हुई जाती थीं और पिता पैरों में गिरकर अपने बच्चों को ढूँढ लाने की विनती कर रहे थे।
ऐसा मार्मिक दृश्य कभी मेरी आँखों से न गुज़रा था।
अब मैं स्वयं को देखती हूँ कि मैं गिरते-गिरते जैसे थम गई हूँ।
व्यथित सा विपुल खिड़की पर जा खड़ा हुआ।
… स्त्रियों की विशेष जेल थी। मेरी कोठरी में लगभग सात महिलाएँ थीं। तरह-तरह के अपराध की भागीदार थीं।
जेल से मुक्ति मिल भी जाती तो आत्मग्लानि से मुक्ति सरल न थी।
मेरी रुचि के अनुरूप बगीचे में मुझे बहुत आनंद आता। जेल की रसोईघर से सब्ज़ी के व्यर्थ हिस्से और छिलकों को मैं साथ की साथ
बगीचे में दबाती रहती और पूरी लगन से देखभाल भी करती।
दो लापता बच्चों के माता-पिता का रो-रोकर बुरा हाल था।
ऐसा मार्मिक दृश्य कभी मेरी आँखों से न गुज़रा था। ऐसा मार्मिक दृश्य कभी मेरी आँखों से न गुज़रा था।
अब मैं स्वयं को देखती हूँ कि मैं गिरते-गिरते जैसे थम गई हूँ। : I have stopped like falling
जेल से मुक्ति मिल भी जाती तो आत्मग्लानि से मुक्ति सरल न थी : self-agression
अब अन्य बहुत सी स्त्रियाँ मेरी सहायता को प्रस्तुत होने लगीं।
जेलर ने सब्ज़ियाँ मिलते ही मुझे अपने कक्ष में आने का संदेश भिजवाया।
लगीं। किसी अनजान आशंका से मैं सिहर उठी। किसी अनजान आशंका से मैं सिहर उठी। धड़कते हृदय से जेलर के कक्ष की ओर कदम बढ़ाया। सूखे पत्ते के समान मेरा पूरा बदन काँपने लगा।
जेलर अधेड़ उम्र के एक सौम्य मुखमुद्रा वाले व्यक्ति थे। उनके सीने पर लगी नामपट्टी पर ‘हरिचरण तिवारी’ लिखा था। उन्होंने मुझे अपने सामने बिठाया। मेरे बारे में पूरी जानकारी मुझसे ली। मेरी फाइल उनके सामने ही रखी थी।
“मेरा सौभाग्य है।” मैंने औपचारिक उत्तर दिया।
“इस कृपा के लिए धन्यवाद। मैं अपनी सज़ा पूरी करना चाहती हूँ।”
मैं अब कुछ नर्म पड़ी। अब मेरा डर समाप्त हो गया था।
मुझे अब उनके इस अनजाने प्रस्ताव में रुचि होने लगी थी।
“इतना सरल नहीं होगा मेरे लिए तुम्हें बताना।
कारागार में सज़ा काटती एक बंदिनी पर एकाएक इतना भरोसा करना सामान्य बात नहीं है।
मुझे देश की सेवा करने का अवसर मिले यह मेरे लिए सौभाग्य की बात है। मैं अपने प्राणों की परवाह किए बिना कार्य को अंजाम देने का वचन देती हूँ।” मुझे अपने जीवन की सार्थकता कहीं दूर से चलकर समीप आती हुई प्रतीत होने लगी।
जेलर साहब को मेरे जवाबों से कुछ तसल्ली मिली होगी, ऐसा मैंने जाना। “जी ज़रूर!” मैंने हामी में सिर हिलाया और अपनी कोठरी में आ गई।
किसी मुसीबत में तो नहीं फँस जाऊँगी मैं?
बहुत हैरानी थी कि अब तक कोई प्रोग्रैस क्यों नहीं हुई।
मैं खुद अपने ऊपर भरोसा नहीं कर पा रही थी।
सार्थकता : significance
प्रतीत होने लगी। : I feel
कार्य को अंजाम देने का : to carry out
मेरी जान को खतरा है, उसकी भी फ़िक्र नहीं है मुझे
तीसरे- तुम इतने दिनों से जेल में हो लेकिन कोई तुम्हारी खोज-खबर लेने नहीं आया,
इन सारी बातों से इस बात की पुष्टि होती है कि तुम ही वह लड़की हो जैसी हमें ज़रूरत थी।
अत: बिना अधिक विचार किए कि क्या बात बुरी लग सकती है और क्या अच्छी, स्पष्ट ही कहते चले गए। मुझे उनका यह बर्ताव अच्छा लगा।
“हाँ है। तुमसे बेहतर यह काम करने वाला हमें नहीं मिल सकता। इतना मुझे विश्वास है।” उन्होंने काफ़ी ज़ोर देकर कहा।
ईश्वर से प्रार्थना करूँगी कि आपका यह मिशन सफल हो।” मैंने स्वयं को मजबूत किया।
“शाबाश!” एक शब्द में जवाब देकर वे उठकर पुलिस जीप में जा बैठे। मैं उनके पीछे हो ली।
स्वयं बारिश के पानी में सराबोर वह लड़का अख़बार को प्लास्टिक की थैली से लपेटकर दरवाज़े पर डाल ही गया था।
ज़रूरत से ज़्यादा चालाकी दिखाने वाले पर मैं मन ही मन क्रोधित हो उठी थी।
कहकर मैंने फ़ोन काट दिया। फ़ोन काटते ही फिर से घंटी बजी।
“माफ़ कीजिए! कल मैं बेरुखी से पेश आया। मैं अपने छोटे भाई के लिए वधू की तलाश कर रहा हूँ। तो आपसे इस सिलसिले में मिलना चाहता हूँ।”
गोविंद के बहुत अनुरोध करने पर मैं थोड़ी देर के लिए मिलने को तैयार हो गई।
अगली मुलाकात में अपनी बेटी से मिलाने का वादा भी किया।
मैं असमंजस में थी कि किसे सही मानूँ?
मुझे एक बच्ची से मिलवाया गया। उसका नाम मौली बताया गया। बच्ची की उम्र दस वर्ष की रही होगी।
मैं आकर्षित हुए बिना न रह सकी।
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