Curry Man class Flashcards

1
Q

संध्या क्या है?

A

संध्या दो शब्दों से बनी है: सम् + ध्यान, अर्थात् सम्यक रूप से ध्यान लगाना।

संध्या आत्मा का भोजन है (आत्मा का आनंद, भोजन)।

संध्या = जिस तत्व में अच्छी प्रकार से ध्यान लगाया जा सके।

आत्मा को परमात्मा के साथ जोड़ना और ईश्वर के निकट बैठना.

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2
Q

संध्या क्यों करनी चाहिए?

A

आत्मा को परमात्मा से जोड़ने के लिए।
आनंद प्राप्त करने के लिए।
शाम को आत्मा का परिक्षण करने के लिए। दिनभर के सही और गलत का आत्मावलोकन करने के लिए.

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3
Q

संध्या कब करनी चाहिए?

A

संध्या सुबह ब्रह्म मुहूर्त में करनी चाहिए।

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4
Q

बृहद यज्ञ क्या है?

A

संपूर्ण हवन, जिसमें सामग्री और आहुति दी जाती है।
दो प्रकार के दैनिक यज्ञ: प्रातःकालीन (सुबह)। सायंकालीन (शाम)।
यज्ञ को श्रेष्ठ कार्य कर्म बताया गया है।
सामग्री हवनकुंड की अग्नि में डाली जाती है और पांच तत्वों में विलीन होती है.

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5
Q

बलिवैश्व देव यज्ञ क्या है?

A

बलि का अर्थ है त्याग। तड़पन का अर्थ है विद्या और तप के द्वारा अपने आप को शुद्ध करना.

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6
Q

पितृ यज्ञ क्या है?

A

श्राद्ध या तड़पन के रूप में होता है। जीवित लोगों के लिए, जैसे माता-पिता और दादा-दादी के पालन-पोषण करने वाले.

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7
Q

अतिथि यज्ञ क्या है?

A

बिना बुलाए आए मेहमान का पूजन, सेवा, और सत्कार करना.

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8
Q

तीन शाश्वत तत्व कौन से हैं?

A

ईश्वर (सत्चिदानंद)
जीव (सत्चिन)
प्रकृति (सत्जड़)

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9
Q

तीन ऋण कौन से हैं?

A

पितृ ऋण (माता-पिता)।
ऋषि ऋण (आचार्य-गुरु)।
देव ऋण (देवी-देवता)।

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10
Q

मंत्र क्या है?

A

मन = मन
त्र = को पार करना

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11
Q

गायत्री मंत्र में कितने अक्षर हैं?

A

24

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12
Q

प्राणायाम के कितने प्रकार हैं?

A

4

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13
Q

कर्म के 3 प्रकार क्या हैं?

A

1) मन (Mind)
2) वाणी (Voice)
3) हाथ (Hand)

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14
Q

Manasa परिक्रमा समझाइए।

A

मन को चारों तरफ घुमाना क्योंकि भगवान हमारे चारों ओर हैं।
परमात्मा अपार ज्ञान का भंडार हैं।
परमात्मा सभी दिशाओं के पथ-प्रदर्शक हैं.

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15
Q

दिशाओं की भूमिका समझाइए।

A

पूर्व: सूर्य उदय। यहाँ यज्ञमान के बैठने का स्थान है। प्रारंभिक दिशा। उत्तर: ज्ञान चाहिए। गुरु आपको प्रकाशित करता है.
West (pratichi) disha
Dakshin

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16
Q

जीवन के क्या 4 लक्ष्य हैं?

A

धर्म
अर्थ
काम
मोक्ष

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17
Q

गायत्री मंत्र समझाइए।

A

ॐ: रक्षक ईश्वर
भू: प्राण/जीवन देने वाला
भुव: दुःख से रहित; सब सुख देने वाला
स्वः: सर्वव्यापी सवितुः: जगह बनाने वाले; ऐश्वर्य का दाता

देवस्य: उस देव का जो वरेण्य
वरेण्यम: स्वीकार करने योग्य
भर्गः: भाव ऐश्वर्य
तत: उसी को हम
धीमहि: ध्यान करें

यहः: जो
नः: हमारी
धियः: बुद्धि को
प्रचोदयात: प्रेरणा दें

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18
Q

मंत्र के स्रोत कहाँ से हैं?

A

1) वेद
2) गृहसूत्र

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19
Q

जल प्रसेचन क्यों करते हैं?

A

अग्नि को मर्यादा में रखने के लिए। अग्नि को वश में रखना.

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20
Q

संस्कार विधि का आरंभ कब हुआ?

A

संवत 1932 विक्रमादित्य, कार्तिक अमावस्या को।

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21
Q

हवन में कौन से प्रकारण हैं?

A

ईश्वर स्तुति प्रार्थना
स्वस्तिवाचनम्
शांति करणम् वरण + संकल्प and tilak
आचमन
अंगस्पर्श
दीप प्रज्वलन (व्योंहिती मंत्र के साथ)
अग्नयाधान + औतबोधन
त्रि समिधा दान
पंचान्च्य जौहुति
जल प्रसेचन आगहरायज भागाहुति अग्निहोत्र (प्रातः + सायंकालीन) आगहरायज हुति व्याहुति स्विष्टकृत आहुति मौन आहुति पावमानीय अष्ट जौहुति आगहरायज आहुति पूर्णाहुति यज प्रार्थना आशीर्वाद प्रवचन/संदेश शांति पाठ

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22
Q

समिधा क्या हैं?

A

8 पाउच की लकड़ी, शुद्ध घी में सम्यक रूप से डालकर।

(क्यों 8? क्योंकि 8 x 3 = 24। गायत्री मंत्र में 24 अक्षर हैं।)

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23
Q

मंत्र क्या हैं?

A

मंत्र विचार हैं। वेद के मंत्र आपका विचार करें।

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24
Q

Swishtakrita kya hein?

A

जो तेल से न पका हुआ हो।
jo shudh ghee de bana ho. Eg mishthaan eg laddoo, kheer , mohan bhog. Bhaat.
Or ghee if none avail

25
Q

मौन आहुति क्या हैं?

A

परमात्मा को साक्षात्कार मानकर।

26
Q

पावमानीये आहुति क्यों देते हैं?

A

कल्याण के लिए।

27
Q

अष्टजौहुति क्या हैं?

A

8 बार घी और सामग्री।

28
Q

व्यवहारभानुः Sloka 1

A

आत्मज्ञानं समारम्भस्तितिक्षा धर्मनित्यता ।
यमर्था नापकर्षन्ति स वै पण्डित उच्यते ।। १ ।।

सच्चा ज्ञानी Pandit वही है जो परमात्मा और जीवात् का ज्ञान रखता है, सत्कर्मों में प्रवृत्त रहता है, सहनशील होता है, धर्म का पालन करता है, और जिसे सांसारिक चीजें (जैसे लोभ, मोह, क्रोध) अपने धर्म से विचलित नहीं कर पातीं।

जिसको परमात्मा और जीवात्मा का यथार्थ ज्ञान, जो आलस्य को छोड़कर सदा उद्योगी, सुखदुःखादि का सहन, धर्म का नित्य सेवन
करनेवाला हो, जिसको कोई पदार्थ धर्म से छुड़ा अधर्म की ओर न खींच सके, वह ‘पंडित’ कहाता है।। १ ।।

29
Q

कितने प्रकार के महायज्ञ हैं ?

A

5 प्रकार के महायज्ञ होते हैं:
1. ब्रह्मयज्ञ

  1. देवयज्ञ
  2. पितृयज्ञ
  3. बलिवैश्वदेवयज्ञ
  4. अतिथि यज्ञ
30
Q

आश्रम-व्यवस्थानुसार यज्ञों की पात्रता

A

1) ब्रह्मचारी: सन्ध्या एवं दैनिक अग्निहोत्र ।

2) गृहस्थ: 5 महायज्ञ, गृहस्थ ही सब प्रकार के यज्ञों की अधिकारी है।

3) वानप्रस्थ: सन्ध्या एवं दैनिक अग्निहोत्र, 5 महायज्ञ तथा पर्वादि यज्ञ।

4)

31
Q

पंडित के लक्षण

A

1) अच्छे विद्वान, धार्मिक, कर्म कराने में कुशल, निर्लोभ, परोपकारी, सुशील, वैदिक मत वाले ।

2) विद्वान्, सद्धर्मी, वेदप्रीय, पूजनीय, सर्वोपकारी

3) ऋत्विज, होता, अध्वर्यु, और ब्रह्मा का वरण करे जो कि धर्मात्मा विद्वान हों ।

4) वेदवित्, धार्मिक विद्वान ब्राह्मण ।

32
Q

What are the qualities of यज्ञकुण्ड or वेदि?

A

1) पवित्र, शुद्ध, और जगह की सुविधा हो

2) वेदि को अच्छी तरह से सजाना चाहिए।

3) कुण्ड का आकार – आहुति प्रमाणं से छोटे – बड़े आकार के कुण्ड
Niche ka bhaag एक चतुर्थांश चौकोन। वैसे ही गहराई और उपर का भाग भी चौकोन होना चाहिए।

4) नीचे का भाग धर्म का भाग है तो उपर का भाग अर्थ, काम, मोक्ष का भाग है।

33
Q

What are the qualities of मेखला?

A

1) यज्ञवेदी या यज्ञकुण्ड के चारों ओर मेखलाएँ होती हैं

2) कुण्ड की उपर ke अनुसार ही उसकी रचना हाती है।

3) तीन मेखलाएँ होती हैं – तीन लाकों ka pratik:
ज्ञान कर्म उपासना,
पृथिवी अन्तरीक्ष द्यौ का प्रतीक
स्थूल भाग पृथिवी, सूक्ष्म भाग अन्तरिक्ष, सूक्ष्मतर भाग़ Swarga lok

4) मेखला पांच अंगुल चौड़ी, तीन अंगुल ऊँची।

34
Q

यज्ञशाला में बैठने की दिशा kya hein?

A

1) होता - पश्चिम दिशा पूर्वाभिमुख ।
यज्ञमान, यज्ञमान पत्नी (sits on right side of husband), संस्कार्य व्यक्ति, स्त्री, पुरुष एवं बालक प्रधानतः कुण्ड के पश्चिम भाग में पूर्वाभिमुख है।

2) अध्वर्यु – उत्तर दिशा दक्षिणाभिमुख ।
Hinsa ko rokne wala

3) ब्रह्मा - दक्षिण दिशा में उत्तराभिमुख ।
Mukhya aadesh dene wala

4) उद्‌गाता – पूर्व दिशा पश्चिमभिमुख ।
Ounche swar mein mantra bolne wala

35
Q

यज्ञपात्र

A

आचमन पात्र: ४,
थाली - ७,
चमच: ४,
कटोरी; ६,
Hawanकुण्ड,
दीपक,
सलाई,
बती,
घी,
सामग्री,
समिधा,
फल,
Mango Leaves (केले, नीमआदि),
चटाई,
तौलिया ।

36
Q

ईश्वरस्तुतिप्रार्थनोपासना में कितने मन्त्र हैं ?

A

8

37
Q

स्वस्तिवाचन में कितने मन्त्र हैं ?

A

31

38
Q

शान्तिकरण कितने मन्त्र हैं ?

A

28

39
Q

दीप प्रज्वल्लन का मन्त्र kya hein?

A

ओं भूर्भुवः स्वः

40
Q

दीपक का स्थान kahan hein?

A

North East mein (Ishaan mein)

41
Q

एक समिधा कितनी अंगुल की होनी चाहिए ?

A

8

42
Q

जल प्रसेचन की विधि kya hein?

A

पहले -पूर्व दिशा में दक्षिण से लेकर उत्तर की ओर।

दूसरा - पश्चिम दिशा में दक्षिण से लेकर उत्तर की ओर

तीसरा - उत्तर दिशा में पश्चिम से लेकर पूर्व की ओर ।

चौथा - दक्षिण दिशा में दक्षिण-पूर्व से लेकर पश्चिम की ओर तत्पश्चात् पूर्व और जहां से प्रारम्भ किया था वहीं samapt karna

43
Q

आधारावाज्यभागाहुति kya hein?

A

घृत की चार आहुतियां हैं।
pratyek विशेष विधियों से पहले अथवा प्रधान होंम से पहले and before purnahuti
र्आघारावाज्यभागाहुति करतें हैं ।

इसमें दो भाग hein:
1) आघारावाज्याहुति -इसमें एक आहुति उत्तर दिशा में East की ओर दी जाती है तो दूसरी आहुति दक्षिण दिशा पूर्व की ओर ।

2)आज्यभागाहुति: इसमें दो आहुतियां कुण्ड के मध्य में दी जाती है ।

44
Q

pawamaniye पावमानीय आहुति

A

प्रधान होम, मुख्य रुप से संस्कारों अथवा यज्ञों में दी जाने वाली आहुतियां, घी की आहुतियां होती हैं।

45
Q

अष्टाज्याहुतियां

A

यज्ञ की एक प्रकरण जिसमें आठ मन्त्र हैं। घी और सामग्री की आहुतियों दी जाती हैं।

46
Q

Explain these terms:
आज्य
आज्यस्थाली
चारुस्थाली
अग्न्याधान पात्र

A

आज्य - घी को आज्य कहते हैं ।

आज्यस्थाली - घृत रखने का पात्र

चारुस्थाली - यज्ञ की सामग्री, शाकल्य, भात,
मोहनभोग आदि रखने का पात्र ।

अग्न्याधान पात्र - कपूर रख उसे प्रज्वलित कर अग्न्याधान करने का पात्र ।

47
Q

Explain these terms:
प्रणीता
प्रोक्षणी
चिमटा
स्थालिपाक

A

प्रणीता - जल रखने के पात्र ।
प्रोक्षणी - जल सिंचन करने के लिए ।
चिमटा - अग्नि को व्यवस्थित करने के लिए।

48
Q

Explain these terms:
स्थालिपाक
स्विष्टकृताहुति
प्राजापत्याहुति
अग्निहोत्र

A

स्थालिपाक - यज्ञ के लिए विशेषरूप से तैयार किया गया मिष्ठान्न

स्विष्टकृताहुति - भात याः मिष्ठान्न की आहुति । प्रायश्चित आहुति

प्राजापत्याहुति - मौन (मन में उच्चारण करके) केवल घी आहुति

अग्निहोत्र - प्रातः और सायं काल में दी जाने वाली आहुतियां

49
Q

कितने प्रकार के होम द्रव्य / सामग्रियों हाती हैं ?

A

चार प्रकार की सामग्रियां होती हैं ।

प्रथम - सुगन्धित (Fragrant)
सुगन्धि से युक्त :- जैसे कि कस्तूरी, केसर (saffon), इलायची (cardamon), जायफल (nutmeg), श्वेत चन्दन (white sandalwood), तगर, जावित्री (mace) आदि ।

द्वितीय - पुष्टिकारक (Nourishing)
पुष्टि की वृद्धि करने वाला :- घृत, दूध, कन्द, अन्न, चावल, गेहूँ आदि ।

तृतीय - मिष्टकारक (Sweetening)
मिठा अन्न, मिठे पदार्थ :- शक्कर, शहद, गुड़ आदि।

चतुर्थ - रोगनाशक (Disease-destroying ayurvedic medicines)
रोगों को नाश करने वाली ओषधियां : गिलोय आदि आयुर्वेदिक ओषधियों ।

50
Q

प्रणायाम का क्या उद्देश्य है?

A

प्रणायाम शरीर को शुद्ध करने, मन को शांत करने और समग्र स्वास्थ्य और कल्याण में सुधार करने में मदद करता है।

51
Q

प्राणायाम कितने प्रकार का होता है?

A

बाह्य - इसके अन्तर्गत श्वांस को झटके से बाहर निकाल कर उसे बाहर ही अधिक रोके रखे जाते हैं

आभ्यान्तर - जब सांस फूलने लगे, तब उसे अंदर खींचकर छाती के अंदर रोककर रखें।

स्तम्भवृति - इसके अन्तर्गत श्वांस को लेते अथवा छोड़ते हुए उसे अचानक जहाँ के तहाँ रोक देना

बह्याभ्यान्तरविषयाक्षेपी - आपको अपनी सांस को नियंत्रित करना है। जब आप सांस बाहर निकाल रहे होते हैं, तो उसको बीच में रोककर वापस अंदर खींच लेना है। और जब सांस अंदर जाने लगे तो उसको बाहर निकलने से रोकना है।

यानी, आपको अपनी सांस को न तो पूरी तरह बाहर जाने देना है और न ही पूरी तरह अंदर आने देना है।

52
Q

अघमर्षण क्या है?

A

अघमर्षण का अर्थ है पापों का नाश करना। यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा नकारात्मक विचारों और कर्मों को दूर किया जाता है।

The essence of this mantra “A vow not to commit sin” (पाप न करने की कामना ) constitutes our Duty towards other beings.

53
Q

मन और हृदय को कैसे शुद्ध किया जा सकता है?

A

मन और हृदय को शुद्ध करने के लिए ध्यान, प्रार्थना और मंत्र जाप जैसे साधनों का उपयोग किया जा सकता है।

54
Q

पाप के मूल कारण क्या हैं?

A

पाप के मूल कारण अहंकार, अभिमान और अज्ञानता हैं। ये नकारात्मक गुण हानिकारक कार्यों और विचारों की ओर ले जाते हैं।

55
Q

वैदिक ग्रंथों की आध्यात्मिक शुद्धि में क्या भूमिका है?

A

वैदिक ग्रंथ आध्यात्मिक शुद्धि में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं क्योंकि वे मार्गदर्शन, ज्ञान और प्रेरणा प्रदान करते हैं। वे वास्तविकता की प्रकृति, मानव स्थिति और मुक्ति के मार्ग के बारे में अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं।

56
Q

मनसा परिक्रमा क्या है?

A

मन को सभी दिशाओं में परिक्रमा परिभ्रमण, घुमाना, चक्कर कटवाना।

मन को विभिन्न दिशाओं में घुमाते हुए, उस दिशा के अधिपति देवता के गुणों का चिंतन-मनन किया जाता है।

Through these 6 mantras, we mentally perform a परिक्रमा (going around) feeling the presence of God, protecting us from all 6 directions clockwise – East, South, West, North, Below and Above.

57
Q

प्राची दिशा का क्या महत्व है?
Om prachi digagniradhipatirasito rakshitaditya iswah.

Tebhyo namo adhipatibhyo namo rakshitribhyo nama ishubhyo nama ebhyo astu.

Yoasmaan dveshti yam vayam dvishmastam vo jambhe dadhmah.

A

प्राची दिशा आगे की दिशा है। हमारे जीवन यात्रा की प्रारम्भिक दिशा है।

हमारे सामने की दिशा आगे बढ़ने और उत्तरोत्तर उन्नति करने की दिशा में अग्निरूप दिशाधिपति प्रभु हमें धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की प्राप्ति के लिए आगे बढ़ने की प्रेरणा दे रहे हैं।

O omniscient god! you are present in front of us in east. We feel your presence in the Eastern direction, which is symbolic of continuous progress.

You created the sun whose arrow like rays give life on earth.

For your ownership, protection and granting life, O god, we salute you again and again.

Persons who have ill-desires for us and for whom we have ill-desires, we leave this matter on your capacity of justice.

58
Q

ॐ दक्षिणा…
Om dakshina digindro adhipatistirashchiraji rakshita pitar ishwah. Tebhyo namo adhipatibhyo namo rakshitribhyo nama ishubhyo nama ebhyo astu. Yoasmaan dveshti yam vayam dvishmastam vo jambhe dadhmah.

A

O prosperous god! We feel your presence as the Lord of the South direction.

Your ability and efficiency as our Lord as the protector who safeguards against all negative forces and entities.

For your ownership, protection and granting life, O god, we salute you again and again.

Persons who have ill-desires for us and for whom we have ill-desires, we leave this matter on your capacity of justice.