कहावत Flashcards

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Q
A
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Q

अंधा क्या चाहे दो आँखें।

A

इच्छित वस्तु की प्राप्ति।

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4
Q

अंधेर नगरी चौपट राजा।

A

अयोग्य प्रशासन।

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5
Q

अंधा बाँटे रेवड़ी फिर-फिर अपने को देय।

A

अधिकार मिलने पर स्वार्थी व्यक्ति अपने लोगों की ही मदद करता है।

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6
Q

अंधे के हाथ बटेर लगाना।

A

बिना परिश्रम के अयोग्य व्यक्ति को सुफल की प्राप्ति।

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7
Q

अंधों में काना राजा।

A

मूर्खों के बीच अल्पज्ञ भी बुद्धिमान माना जाता है।

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8
Q

अधजल गगरी छलकत जाय।

A

अल्पज्ञ अपने ज्ञान पर अधिक इतराता है।

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9
Q

अपनी करनी पार उतरनी।

A

मनुष्य को स्वय के कर्मों के अनुसार ही फल मिलता है।

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10
Q

अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता।

A

अकेला आदमी बड़ा काम नहीं कर सकता है।

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11
Q

अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत।

A

हानि हो जाने के बाद पछताना व्यर्थ है।

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12
Q

अंडे सेवे कोई, बच्चे लेवे कोई।

A

परिश्रम कोई करे फल किसी अन्य को मिले।

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13
Q

अंधे के आगे रोना, अपना दीदा खोना।

A

सहानुभूति रहित या मूर्ख व्यक्ति के सामने अपना दुःख रोना व्यर्थ है।

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14
Q

अकल बड़ी या भैंस।

A

शारीरिक बल की अपेक्षा बुद्धिबल श्रेष्ठ होता है।

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15
Q

अक्का बकिया देय उधार।

A

मूर्ख व्यक्ति अनचाहा कार्य भी करता है।

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16
Q

अपना रख पराया चख।

A

स्वयं के पास होने पर भी किसी अन्य की वस्तु का उपयोग करना।

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17
Q

अपनी-अपनी ढफली, अपना-अपना राग।

A

तालमेल न होना।

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18
Q

अरहर की टूटी गुज़राती ताला।

A

बेमेल प्रबंधन, सामान्य चीजों की सुरक्षा में अत्यधिक खर्च करना।

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19
Q

अपना हाथ जगन्नाथ।

A

अपना कार्य स्वयं करना ही उपयुक्त रहता है।

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20
Q

आँख का अंधा, गाँठ का पूरा।

A

बुद्धिहीन किन्तु संपन्न।

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21
Q

आँख बची और माल चारों का।

A

ध्यान हटते ही चोरी हो सकती है।

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22
Q

आधी छोड़ पूरे ध्यावे, आधी मिले न पूरे पावे।

A

अधिक के लोभ में उपलब्ध वस्तु या लाभ को भी खो बैठना।

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23
Q

आम के आम गुठलियों के दाम।

A

दुगना लाभ।

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24
Q

आए थे हरिभजन को, ओटन लगे कपास।

A

बड़े उद्देश्य को लेकर कार्य प्रारंभ करना किन्तु छोटे कार्य में लग जाना।

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25
आगे कुआँ पीछे खाई।
सब और कष्ट ही कष्ट होना।
26
आ बैल मुझे मार।
जान-बूझकर विपत्ति मोल लेना।
27
आगे नाथ न पीछे पगहा।
बेसहारा
28
आठ वार नौ त्यौहार।
मौजमस्ती से जीवन बिताना।
29
आप भले तो जग भला।
स्वयं भले होने पर आपको भले लोग ही मिलते हैं।
30
आसमान से गिरा, खजूर में अटका।
काम पूरा होते-होते व्यवधान आ जाना।
31
आठ कन्नौजिये नौ चूल्हे।
अलगाव या फूट होना।
32
इन तिलों में तेल नहीं।
कुछ मिलने या मदद की उम्मीद न होना।
33
इधर कुआँ उधर खाई।
सब और संकट।
34
ऊँगली पकड़ते पहुँचा पकड़ना।
थोड़ी सी मदद पाकर अधिकार जमाने की कोशिश करना।
35
उतर गई लोई तो क्या करेगा कोई।
एक बार इज्जत जाने पर व्यक्ति निर्लज्ज हो जाता है।
36
उल्टा चोर कोतवाल को डाँटे।
दोषी व्यक्ति द्वारा निर्दोष पर दोषारोपण करना।
37
उलटे बाँस बरेली को।
विपरीत कार्य करना।
38
ऊँट के मुँह में जीरा।
आवश्यकता अधिक आपूर्ति कम।
39
ऊँची दुकान फीका पकवान।
मात्र दिखावा।
40
ऊँट किस करवट बैठता है।
परिणाम किसके पक्ष में होता है/अनिश्चित परिणाम।
41
उधो का लेना न माधो का देना।
किसी से कोई लेना-देना न होना।
42
उधार का खाना फूस का तापना।
बिना परिश्रम दूसरों के सहारे जीने का निरर्थक प्रयास करना।
43
उधो की पगड़ी, माधो का सिर।
किसी एक का दोष दूसरे पर मढ़ना।
44
एक अनार सौ बीमार।
वस्तु अल्प चाह अधिक लोगों की।
45
एक तो करेला दूसरा नीम चढ़ा।
एकाधिक दोष होना।
46
एक गंदी मछली सारे तालाब को गंदा करती है।
एक व्यक्ति की बुराई से पूरे परिवार/समूह की बदनामी होना।
47
एक तो चोरी दूसरे सीना-जोरी।
अपराध करके रौब जमाना।
48
एक म्यान में दो तलवारें नहीं समा सकती।
दो समान अधिकार वाले व्यक्ति एक साथ कार्य नहीं कर सकते।
49
एके साधे सब सधै, सब साधे सब जाय।
एक समय में एक ही कार्य करना फलदायी होता है।
50
एक ही थैली के चट्टे-बट्टे होना।
समान दुर्गुण वाले एकाधिक व्यक्ति।
51
एक पंथ दो काज।
एक कार्य से दोहरा लाभ।
52
एक हाथ से ताली नहीं बजती।
केवल एक पक्षीय सक्रियता से काम नहीं होता।
53
औछे की प्रीत बालू की भीत।
औछे व्यक्ति की मित्रता क्षणिक होती है।
54
ओस चाटे प्यास नहीं बुझती।
अल्प साधनों से आवश्यकता या कार्य पूरा नहीं हो पाता है।
55
ओखली में सिर दिया तो मूसल का क्या डर।
कठिन कार्य का जिम्मा लेने पर कठिनाइयों से डरना नहीं चाहिए।
56
कंगाली में आटा गीला।
संकट में एक और संकट आना।
57
कभी गाड़ी नाव पर, कभी नाव गाड़ी पर।
परिस्थितियाँ बदलती रहती हैं।
58
करत-करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान।
अभ्यास द्वारा जड़ बुद्धि वाले व्यक्ति भी बुद्धिमान हो सकता है।
59
करे कोई भरे कोई।
किसी अन्य की करनी का फल भोगना।
60
कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा, भानुमति ने कुनबा जोड़ा।
बेमेल वस्तुओं के योग से सब कुछ बनाना।
61
कौवों के कोसने से ढोर नहीं मरते।
बुरे आदमी के बुरा कहने से अच्छे आदमी की बुराई नहीं होती।
62
काला अक्षर भैंस बराबर।
अनपढ़ होना/निरक्षर होना।
63
कुम्हार अपना ही घड़ा सराहता है।
अपनी वस्तु की सभी प्रशंसा करते हैं।
64
कोयले की दलाली में हाथ काला।
कुसंग का बुरा प्रभाव पड़ता ही है।
65
कौआ चले हंस की चाल।
किसी और का अनुकरण कर अपनापन खोना।
66
काबुल में क्या गधे नहीं होते।
मूर्ख सभी जगह मिलते हैं।
67
कभी घी घना तो कभी मूठी चना।
परिस्थितियाँ बदलती रहती हैं, सदैव एक-सी नहीं रहतीं।
68
खग ही जाने खग की भाषा।
अपने लोग ही अपने लोगों की भाषा समझते हैं।
69
खरबूजे को देख खरबूजा रंग बदलता है।
देखा-देखी परिवर्तन आना।
70
खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे।
असफलता से लज्जित व्यक्ति दूसरों पर क्रोध करता है।
71
खोदा पहाड़ निकली चुहिया।
अधिक परिश्रम पर अल्प लाभ।
72
खुदा की लाठी में आवाज नहीं होती।
ईश्वर किसे, कब, क्या सजा देगा उसे कोई नहीं जानता।
73
खुदा देता है तो छप्पर फाड़कर देता है।
ईश्वर की कृपा से व्यक्ति कभी भी मालामाल हो जाता है।
74
गंगा गए गंगादास, यमुना गए जमुनादास।
सिद्धांतहीन अवसरवादी व्यक्ति।
75
गरीब की जोरू सबकी भाभी।
कमजोर आदमी पर सभी रौब जमाते हैं।
76
गुड़ दिए मरे तो जहर क्यों दे।
जब प्रेम से कार्य हो जाए तो क्रोध क्यों कीजिए।
77
गुड़ न दे, पर गुड़ की सी बात तो करे।
कुछ अच्छा दे न दे पर अच्छी बात तो करे।
78
गुरु जी गुड़ ही रहे, चेले शक्कर हो गए।
छोटे व्यक्ति का अपने बड़ों से आगे निकलना।
79
गोद में छोरा (लड़का) शहर में ढिंढोरा।
पास रखी वस्तु को दूर-दूर तक खोजना।
80
घड़ी में तोला घड़ी में माशा।
अस्थिर मनोदशा।
81
घर का भेदी लंका ढाए।
आपसी फूट का बुरा परिणाम होना।
82
घर की मुर्गी दाल बराबर।
अपनी वस्तु की कद्र न करना।
83
घर की खीर तो बाहर खीर।
अपने पास कुछ होने पर ही बाहर भी सम्मान मिलता है।
84
घर में नहीं दाने बुद्धू चली भुनाने।
झूठा दिखावा करना।
85
घोड़ा घास से यारी करे तो खाए क्या।
मजदूरी लेने में संकोच कैसा।
86
घर का जोगी जोगना आन गांव का सिद्ध।
बाहरी व्यक्ति को अधिक सम्मान देना।
87
चंदन की चुटकी भली, गाड़ी भर न काठ।
श्रेष्ठ वस्तु थोड़ी मात्रा में होने पर भी अच्छी लगती है।
88
चट मंगनी पट ब्याह।
तुरंत कार्य संपादित करना।
89
चमड़ी जाय पर दमड़ी न जाय।
अत्यधिक कंजूस।
90
चांद को भी ग्रहण लगता है।
भले आदमियों को भी कष्ट सहने पड़ते हैं।
91
चार दिन की चांदनी फिर अंधेरी रात।
अल्पकालीन सुख।
92
चिकने घड़े पर पानी नहीं ठहरता।
निर्लज्ज व्यक्ति पर किसी बात का प्रभाव नहीं पड़ता है।
93
चोरी का माल मोरी में।
बुरी कमाई का बुरे कार्यों में खर्च होना।
94
चोर-चोर मौसेरे भाई।
दुष्ट लोगों में मित्रता होना।
95
Idioms
Opposite Meanings
96
चूहे के चाम से नगाड़े नहीं मढ़े जाता।
अल्प साधनों से बड़ा काम संभव नहीं होता।
97
चोर को कहे चोरी कर, साहूकार को कहे जागते रहो।
दो पक्षों को आपस में भिड़ाना।
98
चोर की दाढ़ी में तिनका।
दोषी अपने दोष का संकेत दे देता है।
99
छछूंदर के सिर में चमेली का तेल।
कुपात्र द्वारा श्रेष्ठ वस्तु का भोग करना।
100
छोटा मुँह बड़ी बात।
सामर्थ्य से अधिक डींघ हाँकना।
101
छोटे मियाँ तो छोटे मियाँ, बड़े मियाँ सुभानल्लाह।
छोटे की तुलना में बड़े में ज्यादा अवगुण होना।
102
जंगल में मोर नाचा किसने देखा।
गुणों का प्रदर्शन उपयुक्त स्थल पर ही करना चाहिए।
103
जब तक जीना तब तक सीना।
जीवन पर्यंत व्यक्ति को काम धंधा करना होता है।
104
चूहे के चाम से नगाड़े नहीं मढ़े जाता।
अल्प साधनों से बड़ा काम संभव नहीं होता।
105
चोर को कहे चोरी कर, साहूकार को कहे जागते रहो।
दो पक्षों को आपस में भिड़ाना।
106
चोर की दाढ़ी में तिनका।
दोषी अपने दोष का संकेत दे देता है।
107
छछूंदर के सिर में चमेली का तेल।
कुपात्र द्वारा श्रेष्ठ वस्तु का भोग करना।
108
छोटा मुँह बड़ी बात।
सामर्थ्य से अधिक डींघ हाँकना।
109
छोटे मियाँ तो छोटे मियाँ, बड़े मियाँ सुभानल्लाह।
छोटे की तुलना में बड़े में ज्यादा अवगुण होना।
110
जंगल में मोर नाचा किसने देखा।
गुणों का प्रदर्शन उपयुक्त स्थल पर ही करना चाहिए।
111
जब तक जीना तब तक सीना।
जीवन पर्यंत व्यक्ति को काम धंधा करना होता है।
112
जब तक साँस तब तक आस।
अंतिम समय तक आशा बनी रहना।
113
जल में रहकर मगर से बैर।
साथ रहकर दुश्मनी ठीक नहीं।
114
जहाँ गुड़ होगा, वहाँ मखियाँ होंगी।
जहाँ आकर्षण होगा वहाँ लोग एकत्र होते ही हैं।
115
जहाँ न पहुँचे रवि, वहाँ पहुँचे कवि।
कवि की कल्पना का विस्तार सभी जगहों तक होता है।
116
जहाँ मुर्गा नहीं होता, क्या वहाँ सवेरा नहीं होता।
संसार में किसी के अभाव में कोई कार्य नहीं रुकता।
117
जिन खोजा तिन पाइयाँ, गहरे पानी पैठ।
कठिन परिश्रम से ही सफलता संभव होती है।
118
जिस थाली में खाना उसी में छेद करना।
उपकार करने वाले व्यक्ति का अहित सोचना।
119
जिसकी लाठी उसकी भैंस।
शक्तिशाली की विजय होती है।
120
जाके पैर न फटी बिवाई, सो क्या जाने पीर पराई।
जिसने कभी दुख न भोगा हो, वह दूसरों की पीड़ा नहीं जान सकता।
121
जीती मकरी नहीं निगली जाती।
जानते हुए गलत को नहीं स्वीकारा जा सकता।
122
जो गुड़ खायें सो कान छिदवायें।
लाभ के लालच के कारण कष्ट सहना पड़ता है।
123
झूठ के पैर नहीं होते।
झूठ ज्यादा टिकाऊ नहीं होता।
124
झटपट की घानी आधा तेल आधा पानी।
जल्दबाजी में किया गया काम बेकार होता है।
125
झोंपड़ी में रहकर महलों के ख्वाब।
सामर्थ्य से अधिक चाहना।
126
टेढ़ी उँगली किए बिना घी नहीं निकलता।
सीधेपन से काम नहीं चलता।
127
टके की हांडी गई पर कुते की जात पहचान लो।
थोड़ी सी हानि के द्वारा धोखेबाज को पहचानना।
128
ठंडा लोहा गरम लोहे को काट देता है।
शांत व्यक्ति क्रोधी व्यक्ति पर भारी पड़ता है।
129
ठोकर लगे पहाड़ की तोड़े घर की सील।
बाहर के बलवान व्यक्ति से चोट खाने का गुस्सा घर के लोगों पर निकालना।
130
डूबते को तिनके का सहारा।
संकट के समय में थोड़ी सी सहायता भी लाभप्रद होती है।
131
ढाक के तीन पात।
सदा एक सी स्थिति।
132
ढोल के भीतर पोल।
दिखावटी वैभव या शान।
133
तीन लोक से मथुरा न्यारी।
सबसे अलग विचार रखना।
134
तू डाल-डाल मैं पात-पात।
एक से बढ़कर दूसरा चालाक होना।
135
तेल देखो तेल की धार देखो।
कार्य होने व उसके परिणाम की प्रतीक्षा करना।
136
झूठ के पैर नहीं होते।
झूठ ज्यादा टिकाऊ नहीं होता।
137
झटपट की घानी आधा तेल आधा पानी।
जल्दबाजी में किया गया काम बेकार होता है।
138
झोंपड़ी में रहकर महलों के ख्वाब।
सामर्थ्य से अधिक चाहना।
139
टेढ़ी उँगली किए बिना घी नहीं निकलता।
सीधेपन से काम नहीं चलता।
140
टके की हांडी गई पर कुते की जात पहचान लो।
थोड़ी सी हानि के द्वारा धोखेबाज को पहचानना।
141
ठंडा लोहा गरम लोहे को काट देता है।
शांत व्यक्ति क्रोधी व्यक्ति पर भारी पड़ता है।
142
ठोकर लगे पहाड़ की तोड़े घर की सील।
बाहर के बलवान व्यक्ति से चोट खाने का गुस्सा घर के लोगों पर निकालना।
143
डूबते को तिनके का सहारा।
संकट के समय में थोड़ी सी सहायता भी लाभप्रद होती है।
144
ढाक के तीन पात।
सदा एक सी स्थिति।
145
ढोल के भीतर पोल।
दिखावटी वैभव या शान।
146
तीन लोक से मथुरा न्यारी।
सबसे अलग विचार रखना।
147
तू डाल-डाल मैं पात-पात।
एक से बढ़कर दूसरा चालाक होना।
148
तेल देखो तेल की धार देखो।
कार्य होने व उसके परिणाम की प्रतीक्षा करना।
149
तेली का तेल जले मशालची का दिल जले।
खर्च कोई करे, परेशान कोई और हो।
150
तेते पाँव पसारिये, जेती लंबी सौर।
सामर्थ्य के अनुसार खर्च करना।
151
तन पर नहीं लत्ता, पान खाये अलबत्ता।
अभावों में भी झूठी शान का प्रदर्शन।
152
तबेल के बला बंदर के सिर।
किसी का दोष किसी दूसरे पर मढ़ना।
153
तेली के बैल को घर ही पचास कोस।
घर में ही कार्य की अधिकता होना।
154
थका ऊँट सराय ताकता।
थकने पर सभी को विश्राम चाहिए।
155
थोथा चना बाजे घना।
अल्पज्ञानी व्यक्ति अधिक डींगें हाँकता है।
156
दबी बिल्ली चूहों से कान कटवाती है।
दोषी व्यक्ति अपने से कमजोर के आगे भी झुकता है।
157
दान की बछिया के दाँत नहीं गिने जाते।
मुफ्त में मिली वस्तु के गुण-दोष नहीं देखे जाते।
158
दाल-भात में मूसलचंद।
अनावश्यक दखल देने वाला।
159
दिल्ली अभी दूर है।
सफलता अभी दूर है।
160
दुधारू गाय की लात भी सहनी पड़ती है।
जिस व्यक्ति से लाभ हो उसका गुस्सा भी सहना पड़ता है।
161
दुविधा में दोनों गए माया मिली न राम।
दुविधायुक्त स्थिति में कुछ भी फल लाभ संभव नहीं होता।
162
दूर के ढोल सुहावने होते हैं।
दूर से वस्तुएँ अच्छी लगती हैं।
163
देसी कुतिया, विलायती बोली।
किस अन्य की नकल करना।
164
दूध का जला, छाछ को भी फूँक-फूँक कर पीता है।
एक बार ठोकर खाया व्यक्ति आगे विशेष सावधानी बरतता है।
165
धोबी का कुत्ता न घर का न घाट का।
दो पक्षों से जुड़ा व्यक्ति कहीं का नहीं रहता।
166
धोलबिन पर बस न चला तो गधे के कान उमेड़े।
सामर्थ्यवान पर बस न चलने पर कमजोर पर रौब जमाना।
167
धोबी रोवे धुलाई को, मियाँ रोवे कपड़े को।
अपने-अपने नुकसान की चिंता करना।
168
धन का धन गया, मीत की मीत गई।
उधार के कारण धन व मित्रता दोनों नहीं रहते।
169
न नौ मन तेल होगा, न राधा नाचेगी।
अनहोनी शर्त रखना।
170
नक्कारखाने में तूती की आवाज।
बड़ों के बीच छोटे आदमी की बात कोई नहीं सुनता है।
171
न सावन सूखें न भादों हरी।
सदैव एकसी स्थिति।
172
न रहेगा बाँस न बजेगी बाँसुरी।
झगड़े के कारण को समाप्त करना।
173
नाच न जाने आँगन टेढ़ा।
स्वयं के दोष छिपाने हेतु दूसरों में कमियाँ ढूँढना।
174
नेकी कर कुए में डाल।
भलाई करके भूल जाना।
175
नेकी और पूछ-पूछ।
अच्छे कार्य के लिए किसी से पूछने की आवश्यकता नहीं होती।
176
नीम हकीम खतरे जान।
अधूरा ज्ञान हानिकारक होता है।
177
नौ नकद तेरह उधार।
भविष्य में बड़े लाभ की आशा की अपेक्षा आज होनेवाला छोटा काम बेहतर होता है।
178
नौ दिन चले अढ़ाई कोस।
अधिक समय में थोड़ा काम।
179
नौ सौ चूहे खाय बिल्ली हज को चली।
बड़ा पाप करने के बाद पुण्य का ढोंग करना।
180
न ऊधों का लेना न माधो का देना।
किसी से कोई मतलब न होना।
181
नमाज छोड़ने गए रोजे गले पड़े।
छोटे कार्य से मुक्ति के प्रयास में बड़े कार्य का जिम्मा गले पड़ना।
182
नानी के आगे ननिहाल की बातें।
जानकार को जानकारी देना।
183
नाई की बारात में सब ठाकुर ही ठाकुर।
सभी बड़े बन बैठते हैं तो काम नहीं हो पाता है।
184
नाम बड़े और दर्शन छोटे।
प्रसिद्धि अधिक किंतु गुण कम।
185
पढ़े तो हैं किंतु गुणे नहीं।
शिक्षित किंतु अनुभवहीन।
186
पराया घर थूकने का भी डर।
दूसरों के घर हर बात का संकोच रहता है।
187
पाँचों उँगलियाँ बराबर नहीं होती।
सब लोग एक से नहीं होते।
188
पशीन सपनाई सुख नाहीं।
पराधीनता में सुख नहीं होता।
189
प्यास से फजी भयो डेयो-डेयो जाय।
छोटा आदमी बड़ा पद पाकर इतराता है।
190
फटा दूध और फटा मन फिर नहीं मिलता।
एक बार मनभेद होने पर पुनः पहले-सा मेल नहीं होता।
191
फरा सो झरा, बरा सो बुझाना।
जो फला है वह झड़ेंगा और जला हुआ भी बुझेंगा (सभी का अंत निश्चित है)।
192
पर उपदेश कुशल बहुतेरे।
दूसरों को उपदेश देने में सब चतुर होते हैं।
193
बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद।
मूर्ख व्यक्ति अच्छी वस्तु की महत्ता नहीं जानता है।
194
बकरे की माँ कब तक खेर मनायेगी।
जिसे कष्ट पाना है वह ज्यादा समय तक नहीं बच सकता।
195
बासी बचे न कुत्ता खाय।
जरूरत अनुसार कार्य करना।
196
बिल्ली के भाग से छींका टूटना।
बिना प्रयास अयोग्य व्यक्ति को श्रेष्ठ वस्तु मिलना।
197
बोया पेड़ बबूल का तो आम कहाँ से होय।
बुरे काम का अच्छा परिणाम संभव नहीं।
198
बैठे से बेगार भली।
फालतू या बेकार बैठने की अपेक्षा सामान्य (कम लाभ) कार्य करना भी बेहतर होता है।
199
बारह बरस पीछे घूरे के भी दिन फिरते हैं।
एक न एक दिन सभी के जीवन में अच्छे दिन आते हैं।
200
बाप भला न भैया, सबसे बड़ा रुपैया।
रिश्तों की अपेक्षा पैसों को अहमियत देना।
201
बाप ने मारी मेंढकी बेटा तीरंदाज।
परिवार के मुखिया के अयोग्य होने पर भी संतान का योग्य होना।
202
बिच्छू का मंतर न जाने, साँप के बिल में हाथ डाले।
योग्यतान के अभाव में भी कठिन कार्य का जिम्मा लेना।
203
भेड़ की लात घूटने तक।
कमजोर व्यक्ति किसी को अधिक नुकसान नहीं कर सकता।
204
भागते भूत की लंगोटी ही सही।
जिससे कुछ मिलने की अपेक्षा न हो उससे थोड़ा भी मिल जाए तो बेहतर।
205
भूखे भजन न होय गोपाला।
भूख के समय दूसरा कुछ ठीक नहीं लगता।
206
भैंस के आगे बीन बजाए, भैंस खड़ी पगुराय।
मूर्ख के सम्मुख ज्ञान की बातें करना व्यर्थ है।
207
मन चंगा तो कठौती में गंगा।
मन की पवित्रता महत्वपूर्ण है।
208
मरता क्या न करता।
मुसीबत में व्यक्ति गलत कार्य भी करता है।
209
मान न मान मैं तेरा मेहमान।
जबरदस्ती गले पड़ना।
210
मियाँ बीवी राजी तो क्या करेगा काजी।
दो लोगों में आपसी प्रेम है तो तीसरा रोक भी नहीं सकता।
211
मुख में राम, बगल में छुरी।
मित्रता का दिखावा कर मन में धूर्तता रखना।
212
मन के हारे हार है, मन के जीते जीत।
उत्साह से ही सफलता संभव होती है।
213
मेरी बिल्ली मुझसे ही म्याऊं।
आश्रयदाता पर रौब जमाना।
214
मन के लड्डूओं से पेट नहीं भरता।
केवल कल्पनाओं से तृप्ति संभव नहीं होती है।
215
मुल्ला की दौड़ मस्जिद तक।
सीमित सामर्थ्य होना।
216
मन भावै मुँड हिलावै।
मन से चाहना किंतु ऊपर से दिखावे के लिए मना करना।
217
मुँह माँगी मौत नहीं मिलती।
अपनी इच्छा से ही सब कुछ नहीं होता।
218
यह मुँह और मसूर की दाल।
हैसियत से बढ़कर बात करना।
219
यथा नाम तथा गुण।
नाम के अनुसार गुण होना।
220
यथा राजा तथा प्रजा।
जैसा स्वामी वैसा सेवक।
221
रस्सी जल गई पर बल न गया।
प्रतिघात चले जाने पर भी घमंड बने रहना।
222
रोज कुआँ खोदना, रोज पानी पीना।
प्रतिदिन कमाकर जीवन यापन करना।
223
लकड़ी के बल बंदर नाचे।
भय के कारण काम करना।
224
लोहे को लोहा ही काटता है।
बुराई को बुराई से ही जीता जा सकता है।
225
लातों के भूत बातों से नहीं मानते।
दुष्ट व्यक्ति भय से ही मानते हैं मात्र कहने से नहीं।
226
लिखे ईंसा पढ़े मूसा।
ऐसी लिखावट जिसे पढ़ा न जा सके।
227
विनाशकाले विपरीत बुद्धि।
प्रतिकूल समय में विवेक भी जाता रहता है।
228
विधि का लिखा कोई मिटा नहीं सका।
भाग्य का लिखा कोई बदल नहीं सकता।
229
साँप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे।
बिना किसी नुकसान के कार्य पूर्ण करना।
230
साँप छछूंदर की गति होना।
दुविधा में होना।
231
सावन के अंधे को हरा ही हरा दिखाई दे।
सुख-वैभव में पलते व्यक्ति को दूसरों के कष्टों का अनुभव नहीं हो सकता।
232
सब धान बाईस पसेरी।
अच्छे-बुरे की परख न कर सबको समान समझना।
233
समरथ को नहीं दोष गुसाईं।
सामर्थ्यवान व्यक्ति को कोई भी कुछ नहीं कहता।
234
सईयाँ भए कोतवाल तो अब डर काहे का।
अपने व्यक्ति के बड़े पद पर होने पर लोग उसका अनुचित लाभ उठाते हैं।
235
सहज पके सो मीठा होय।
उचित प्रक्रिया से किया गया कार्य ही ठीक होता है।
236
हल्दी लगे न फिटकरी रंग चोखा आ जाए।
बिना खर्च के कार्य का अच्छी तरह से संपादन करना।
237
हथेली पर सरसों नहीं उगती।
प्रत्येक कार्य पूर्ण होने में एक निश्चित समय लगता है।
238
हाथ कंगन को आरसी क्या।
प्रत्यक्ष को प्रमाण की आवश्यकता नहीं होती।
239
हाथी के दाँत खाने के और तथा दिखाने के और।
कपटपूर्ण व्यवहार या करनी-करनी में अंतर होना।
240
होनहार बिरवान के होत चीकने पात।
महान व्यक्तियों के श्रेष्ठ गुणों के लक्षण बचपन से ही दिखाई पड़ने लगते हैं।
241
हाथ सुगंधित बगल कतरनी।
छल-कपट का व्यवहार।