कहावत Flashcards

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Q
A
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3
Q

अंधा क्या चाहे दो आँखें।

A

इच्छित वस्तु की प्राप्ति।

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4
Q

अंधेर नगरी चौपट राजा।

A

अयोग्य प्रशासन।

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5
Q

अंधा बाँटे रेवड़ी फिर-फिर अपने को देय।

A

अधिकार मिलने पर स्वार्थी व्यक्ति अपने लोगों की ही मदद करता है।

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6
Q

अंधे के हाथ बटेर लगाना।

A

बिना परिश्रम के अयोग्य व्यक्ति को सुफल की प्राप्ति।

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7
Q

अंधों में काना राजा।

A

मूर्खों के बीच अल्पज्ञ भी बुद्धिमान माना जाता है।

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8
Q

अधजल गगरी छलकत जाय।

A

अल्पज्ञ अपने ज्ञान पर अधिक इतराता है।

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9
Q

अपनी करनी पार उतरनी।

A

मनुष्य को स्वय के कर्मों के अनुसार ही फल मिलता है।

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10
Q

अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता।

A

अकेला आदमी बड़ा काम नहीं कर सकता है।

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11
Q

अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत।

A

हानि हो जाने के बाद पछताना व्यर्थ है।

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12
Q

अंडे सेवे कोई, बच्चे लेवे कोई।

A

परिश्रम कोई करे फल किसी अन्य को मिले।

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13
Q

अंधे के आगे रोना, अपना दीदा खोना।

A

सहानुभूति रहित या मूर्ख व्यक्ति के सामने अपना दुःख रोना व्यर्थ है।

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14
Q

अकल बड़ी या भैंस।

A

शारीरिक बल की अपेक्षा बुद्धिबल श्रेष्ठ होता है।

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15
Q

अक्का बकिया देय उधार।

A

मूर्ख व्यक्ति अनचाहा कार्य भी करता है।

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16
Q

अपना रख पराया चख।

A

स्वयं के पास होने पर भी किसी अन्य की वस्तु का उपयोग करना।

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17
Q

अपनी-अपनी ढफली, अपना-अपना राग।

A

तालमेल न होना।

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18
Q

अरहर की टूटी गुज़राती ताला।

A

बेमेल प्रबंधन, सामान्य चीजों की सुरक्षा में अत्यधिक खर्च करना।

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19
Q

अपना हाथ जगन्नाथ।

A

अपना कार्य स्वयं करना ही उपयुक्त रहता है।

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20
Q

आँख का अंधा, गाँठ का पूरा।

A

बुद्धिहीन किन्तु संपन्न।

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21
Q

आँख बची और माल चारों का।

A

ध्यान हटते ही चोरी हो सकती है।

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22
Q

आधी छोड़ पूरे ध्यावे, आधी मिले न पूरे पावे।

A

अधिक के लोभ में उपलब्ध वस्तु या लाभ को भी खो बैठना।

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23
Q

आम के आम गुठलियों के दाम।

A

दुगना लाभ।

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24
Q

आए थे हरिभजन को, ओटन लगे कपास।

A

बड़े उद्देश्य को लेकर कार्य प्रारंभ करना किन्तु छोटे कार्य में लग जाना।

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25
Q

आगे कुआँ पीछे खाई।

A

सब और कष्ट ही कष्ट होना।

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26
Q

आ बैल मुझे मार।

A

जान-बूझकर विपत्ति मोल लेना।

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27
Q

आगे नाथ न पीछे पगहा।

A

बेसहारा

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28
Q

आठ वार नौ त्यौहार।

A

मौजमस्ती से जीवन बिताना।

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29
Q

आप भले तो जग भला।

A

स्वयं भले होने पर आपको भले लोग ही मिलते हैं।

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30
Q

आसमान से गिरा, खजूर में अटका।

A

काम पूरा होते-होते व्यवधान आ जाना।

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31
Q

आठ कन्नौजिये नौ चूल्हे।

A

अलगाव या फूट होना।

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32
Q

इन तिलों में तेल नहीं।

A

कुछ मिलने या मदद की उम्मीद न होना।

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33
Q

इधर कुआँ उधर खाई।

A

सब और संकट।

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34
Q

ऊँगली पकड़ते पहुँचा पकड़ना।

A

थोड़ी सी मदद पाकर अधिकार जमाने की कोशिश करना।

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35
Q

उतर गई लोई तो क्या करेगा कोई।

A

एक बार इज्जत जाने पर व्यक्ति निर्लज्ज हो जाता है।

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36
Q

उल्टा चोर कोतवाल को डाँटे।

A

दोषी व्यक्ति द्वारा निर्दोष पर दोषारोपण करना।

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37
Q

उलटे बाँस बरेली को।

A

विपरीत कार्य करना।

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38
Q

ऊँट के मुँह में जीरा।

A

आवश्यकता अधिक आपूर्ति कम।

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39
Q

ऊँची दुकान फीका पकवान।

A

मात्र दिखावा।

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40
Q

ऊँट किस करवट बैठता है।

A

परिणाम किसके पक्ष में होता है/अनिश्चित परिणाम।

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41
Q

उधो का लेना न माधो का देना।

A

किसी से कोई लेना-देना न होना।

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42
Q

उधार का खाना फूस का तापना।

A

बिना परिश्रम दूसरों के सहारे जीने का निरर्थक प्रयास करना।

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43
Q

उधो की पगड़ी, माधो का सिर।

A

किसी एक का दोष दूसरे पर मढ़ना।

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44
Q

एक अनार सौ बीमार।

A

वस्तु अल्प चाह अधिक लोगों की।

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45
Q

एक तो करेला दूसरा नीम चढ़ा।

A

एकाधिक दोष होना।

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46
Q

एक गंदी मछली सारे तालाब को गंदा करती है।

A

एक व्यक्ति की बुराई से पूरे परिवार/समूह की बदनामी होना।

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47
Q

एक तो चोरी दूसरे सीना-जोरी।

A

अपराध करके रौब जमाना।

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48
Q

एक म्यान में दो तलवारें नहीं समा सकती।

A

दो समान अधिकार वाले व्यक्ति एक साथ कार्य नहीं कर सकते।

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49
Q

एके साधे सब सधै, सब साधे सब जाय।

A

एक समय में एक ही कार्य करना फलदायी होता है।

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50
Q

एक ही थैली के चट्टे-बट्टे होना।

A

समान दुर्गुण वाले एकाधिक व्यक्ति।

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51
Q

एक पंथ दो काज।

A

एक कार्य से दोहरा लाभ।

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52
Q

एक हाथ से ताली नहीं बजती।

A

केवल एक पक्षीय सक्रियता से काम नहीं होता।

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53
Q

औछे की प्रीत बालू की भीत।

A

औछे व्यक्ति की मित्रता क्षणिक होती है।

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54
Q

ओस चाटे प्यास नहीं बुझती।

A

अल्प साधनों से आवश्यकता या कार्य पूरा नहीं हो पाता है।

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55
Q

ओखली में सिर दिया तो मूसल का क्या डर।

A

कठिन कार्य का जिम्मा लेने पर कठिनाइयों से डरना नहीं चाहिए।

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56
Q

कंगाली में आटा गीला।

A

संकट में एक और संकट आना।

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57
Q

कभी गाड़ी नाव पर, कभी नाव गाड़ी पर।

A

परिस्थितियाँ बदलती रहती हैं।

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58
Q

करत-करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान।

A

अभ्यास द्वारा जड़ बुद्धि वाले व्यक्ति भी बुद्धिमान हो सकता है।

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59
Q

करे कोई भरे कोई।

A

किसी अन्य की करनी का फल भोगना।

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60
Q

कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा, भानुमति ने कुनबा जोड़ा।

A

बेमेल वस्तुओं के योग से सब कुछ बनाना।

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61
Q

कौवों के कोसने से ढोर नहीं मरते।

A

बुरे आदमी के बुरा कहने से अच्छे आदमी की बुराई नहीं होती।

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62
Q

काला अक्षर भैंस बराबर।

A

अनपढ़ होना/निरक्षर होना।

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63
Q

कुम्हार अपना ही घड़ा सराहता है।

A

अपनी वस्तु की सभी प्रशंसा करते हैं।

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64
Q

कोयले की दलाली में हाथ काला।

A

कुसंग का बुरा प्रभाव पड़ता ही है।

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65
Q

कौआ चले हंस की चाल।

A

किसी और का अनुकरण कर अपनापन खोना।

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66
Q

काबुल में क्या गधे नहीं होते।

A

मूर्ख सभी जगह मिलते हैं।

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67
Q

कभी घी घना तो कभी मूठी चना।

A

परिस्थितियाँ बदलती रहती हैं, सदैव एक-सी नहीं रहतीं।

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68
Q

खग ही जाने खग की भाषा।

A

अपने लोग ही अपने लोगों की भाषा समझते हैं।

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69
Q

खरबूजे को देख खरबूजा रंग बदलता है।

A

देखा-देखी परिवर्तन आना।

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70
Q

खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे।

A

असफलता से लज्जित व्यक्ति दूसरों पर क्रोध करता है।

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71
Q

खोदा पहाड़ निकली चुहिया।

A

अधिक परिश्रम पर अल्प लाभ।

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72
Q

खुदा की लाठी में आवाज नहीं होती।

A

ईश्वर किसे, कब, क्या सजा देगा उसे कोई नहीं जानता।

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73
Q

खुदा देता है तो छप्पर फाड़कर देता है।

A

ईश्वर की कृपा से व्यक्ति कभी भी मालामाल हो जाता है।

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74
Q

गंगा गए गंगादास, यमुना गए जमुनादास।

A

सिद्धांतहीन अवसरवादी व्यक्ति।

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75
Q

गरीब की जोरू सबकी भाभी।

A

कमजोर आदमी पर सभी रौब जमाते हैं।

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76
Q

गुड़ दिए मरे तो जहर क्यों दे।

A

जब प्रेम से कार्य हो जाए तो क्रोध क्यों कीजिए।

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77
Q

गुड़ न दे, पर गुड़ की सी बात तो करे।

A

कुछ अच्छा दे न दे पर अच्छी बात तो करे।

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78
Q

गुरु जी गुड़ ही रहे, चेले शक्कर हो गए।

A

छोटे व्यक्ति का अपने बड़ों से आगे निकलना।

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79
Q

गोद में छोरा (लड़का) शहर में ढिंढोरा।

A

पास रखी वस्तु को दूर-दूर तक खोजना।

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80
Q

घड़ी में तोला घड़ी में माशा।

A

अस्थिर मनोदशा।

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81
Q

घर का भेदी लंका ढाए।

A

आपसी फूट का बुरा परिणाम होना।

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82
Q

घर की मुर्गी दाल बराबर।

A

अपनी वस्तु की कद्र न करना।

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83
Q

घर की खीर तो बाहर खीर।

A

अपने पास कुछ होने पर ही बाहर भी सम्मान मिलता है।

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84
Q

घर में नहीं दाने बुद्धू चली भुनाने।

A

झूठा दिखावा करना।

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85
Q

घोड़ा घास से यारी करे तो खाए क्या।

A

मजदूरी लेने में संकोच कैसा।

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86
Q

घर का जोगी जोगना आन गांव का सिद्ध।

A

बाहरी व्यक्ति को अधिक सम्मान देना।

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87
Q

चंदन की चुटकी भली, गाड़ी भर न काठ।

A

श्रेष्ठ वस्तु थोड़ी मात्रा में होने पर भी अच्छी लगती है।

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88
Q

चट मंगनी पट ब्याह।

A

तुरंत कार्य संपादित करना।

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89
Q

चमड़ी जाय पर दमड़ी न जाय।

A

अत्यधिक कंजूस।

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90
Q

चांद को भी ग्रहण लगता है।

A

भले आदमियों को भी कष्ट सहने पड़ते हैं।

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91
Q

चार दिन की चांदनी फिर अंधेरी रात।

A

अल्पकालीन सुख।

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92
Q

चिकने घड़े पर पानी नहीं ठहरता।

A

निर्लज्ज व्यक्ति पर किसी बात का प्रभाव नहीं पड़ता है।

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93
Q

चोरी का माल मोरी में।

A

बुरी कमाई का बुरे कार्यों में खर्च होना।

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94
Q

चोर-चोर मौसेरे भाई।

A

दुष्ट लोगों में मित्रता होना।

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95
Q

Idioms

A

Opposite Meanings

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96
Q

चूहे के चाम से नगाड़े नहीं मढ़े जाता।

A

अल्प साधनों से बड़ा काम संभव नहीं होता।

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97
Q

चोर को कहे चोरी कर, साहूकार को कहे जागते रहो।

A

दो पक्षों को आपस में भिड़ाना।

98
Q

चोर की दाढ़ी में तिनका।

A

दोषी अपने दोष का संकेत दे देता है।

99
Q

छछूंदर के सिर में चमेली का तेल।

A

कुपात्र द्वारा श्रेष्ठ वस्तु का भोग करना।

100
Q

छोटा मुँह बड़ी बात।

A

सामर्थ्य से अधिक डींघ हाँकना।

101
Q

छोटे मियाँ तो छोटे मियाँ, बड़े मियाँ सुभानल्लाह।

A

छोटे की तुलना में बड़े में ज्यादा अवगुण होना।

102
Q

जंगल में मोर नाचा किसने देखा।

A

गुणों का प्रदर्शन उपयुक्त स्थल पर ही करना चाहिए।

103
Q

जब तक जीना तब तक सीना।

A

जीवन पर्यंत व्यक्ति को काम धंधा करना होता है।

104
Q

चूहे के चाम से नगाड़े नहीं मढ़े जाता।

A

अल्प साधनों से बड़ा काम संभव नहीं होता।

105
Q

चोर को कहे चोरी कर, साहूकार को कहे जागते रहो।

A

दो पक्षों को आपस में भिड़ाना।

106
Q

चोर की दाढ़ी में तिनका।

A

दोषी अपने दोष का संकेत दे देता है।

107
Q

छछूंदर के सिर में चमेली का तेल।

A

कुपात्र द्वारा श्रेष्ठ वस्तु का भोग करना।

108
Q

छोटा मुँह बड़ी बात।

A

सामर्थ्य से अधिक डींघ हाँकना।

109
Q

छोटे मियाँ तो छोटे मियाँ, बड़े मियाँ सुभानल्लाह।

A

छोटे की तुलना में बड़े में ज्यादा अवगुण होना।

110
Q

जंगल में मोर नाचा किसने देखा।

A

गुणों का प्रदर्शन उपयुक्त स्थल पर ही करना चाहिए।

111
Q

जब तक जीना तब तक सीना।

A

जीवन पर्यंत व्यक्ति को काम धंधा करना होता है।

112
Q

जब तक साँस तब तक आस।

A

अंतिम समय तक आशा बनी रहना।

113
Q

जल में रहकर मगर से बैर।

A

साथ रहकर दुश्मनी ठीक नहीं।

114
Q

जहाँ गुड़ होगा, वहाँ मखियाँ होंगी।

A

जहाँ आकर्षण होगा वहाँ लोग एकत्र होते ही हैं।

115
Q

जहाँ न पहुँचे रवि, वहाँ पहुँचे कवि।

A

कवि की कल्पना का विस्तार सभी जगहों तक होता है।

116
Q

जहाँ मुर्गा नहीं होता, क्या वहाँ सवेरा नहीं होता।

A

संसार में किसी के अभाव में कोई कार्य नहीं रुकता।

117
Q

जिन खोजा तिन पाइयाँ, गहरे पानी पैठ।

A

कठिन परिश्रम से ही सफलता संभव होती है।

118
Q

जिस थाली में खाना उसी में छेद करना।

A

उपकार करने वाले व्यक्ति का अहित सोचना।

119
Q

जिसकी लाठी उसकी भैंस।

A

शक्तिशाली की विजय होती है।

120
Q

जाके पैर न फटी बिवाई, सो क्या जाने पीर पराई।

A

जिसने कभी दुख न भोगा हो, वह दूसरों की पीड़ा नहीं जान सकता।

121
Q

जीती मकरी नहीं निगली जाती।

A

जानते हुए गलत को नहीं स्वीकारा जा सकता।

122
Q

जो गुड़ खायें सो कान छिदवायें।

A

लाभ के लालच के कारण कष्ट सहना पड़ता है।

123
Q

झूठ के पैर नहीं होते।

A

झूठ ज्यादा टिकाऊ नहीं होता।

124
Q

झटपट की घानी आधा तेल आधा पानी।

A

जल्दबाजी में किया गया काम बेकार होता है।

125
Q

झोंपड़ी में रहकर महलों के ख्वाब।

A

सामर्थ्य से अधिक चाहना।

126
Q

टेढ़ी उँगली किए बिना घी नहीं निकलता।

A

सीधेपन से काम नहीं चलता।

127
Q

टके की हांडी गई पर कुते की जात पहचान लो।

A

थोड़ी सी हानि के द्वारा धोखेबाज को पहचानना।

128
Q

ठंडा लोहा गरम लोहे को काट देता है।

A

शांत व्यक्ति क्रोधी व्यक्ति पर भारी पड़ता है।

129
Q

ठोकर लगे पहाड़ की तोड़े घर की सील।

A

बाहर के बलवान व्यक्ति से चोट खाने का गुस्सा घर के लोगों पर निकालना।

130
Q

डूबते को तिनके का सहारा।

A

संकट के समय में थोड़ी सी सहायता भी लाभप्रद होती है।

131
Q

ढाक के तीन पात।

A

सदा एक सी स्थिति।

132
Q

ढोल के भीतर पोल।

A

दिखावटी वैभव या शान।

133
Q

तीन लोक से मथुरा न्यारी।

A

सबसे अलग विचार रखना।

134
Q

तू डाल-डाल मैं पात-पात।

A

एक से बढ़कर दूसरा चालाक होना।

135
Q

तेल देखो तेल की धार देखो।

A

कार्य होने व उसके परिणाम की प्रतीक्षा करना।

136
Q

झूठ के पैर नहीं होते।

A

झूठ ज्यादा टिकाऊ नहीं होता।

137
Q

झटपट की घानी आधा तेल आधा पानी।

A

जल्दबाजी में किया गया काम बेकार होता है।

138
Q

झोंपड़ी में रहकर महलों के ख्वाब।

A

सामर्थ्य से अधिक चाहना।

139
Q

टेढ़ी उँगली किए बिना घी नहीं निकलता।

A

सीधेपन से काम नहीं चलता।

140
Q

टके की हांडी गई पर कुते की जात पहचान लो।

A

थोड़ी सी हानि के द्वारा धोखेबाज को पहचानना।

141
Q

ठंडा लोहा गरम लोहे को काट देता है।

A

शांत व्यक्ति क्रोधी व्यक्ति पर भारी पड़ता है।

142
Q

ठोकर लगे पहाड़ की तोड़े घर की सील।

A

बाहर के बलवान व्यक्ति से चोट खाने का गुस्सा घर के लोगों पर निकालना।

143
Q

डूबते को तिनके का सहारा।

A

संकट के समय में थोड़ी सी सहायता भी लाभप्रद होती है।

144
Q

ढाक के तीन पात।

A

सदा एक सी स्थिति।

145
Q

ढोल के भीतर पोल।

A

दिखावटी वैभव या शान।

146
Q

तीन लोक से मथुरा न्यारी।

A

सबसे अलग विचार रखना।

147
Q

तू डाल-डाल मैं पात-पात।

A

एक से बढ़कर दूसरा चालाक होना।

148
Q

तेल देखो तेल की धार देखो।

A

कार्य होने व उसके परिणाम की प्रतीक्षा करना।

149
Q

तेली का तेल जले मशालची का दिल जले।

A

खर्च कोई करे, परेशान कोई और हो।

150
Q

तेते पाँव पसारिये, जेती लंबी सौर।

A

सामर्थ्य के अनुसार खर्च करना।

151
Q

तन पर नहीं लत्ता, पान खाये अलबत्ता।

A

अभावों में भी झूठी शान का प्रदर्शन।

152
Q

तबेल के बला बंदर के सिर।

A

किसी का दोष किसी दूसरे पर मढ़ना।

153
Q

तेली के बैल को घर ही पचास कोस।

A

घर में ही कार्य की अधिकता होना।

154
Q

थका ऊँट सराय ताकता।

A

थकने पर सभी को विश्राम चाहिए।

155
Q

थोथा चना बाजे घना।

A

अल्पज्ञानी व्यक्ति अधिक डींगें हाँकता है।

156
Q

दबी बिल्ली चूहों से कान कटवाती है।

A

दोषी व्यक्ति अपने से कमजोर के आगे भी झुकता है।

157
Q

दान की बछिया के दाँत नहीं गिने जाते।

A

मुफ्त में मिली वस्तु के गुण-दोष नहीं देखे जाते।

158
Q

दाल-भात में मूसलचंद।

A

अनावश्यक दखल देने वाला।

159
Q

दिल्ली अभी दूर है।

A

सफलता अभी दूर है।

160
Q

दुधारू गाय की लात भी सहनी पड़ती है।

A

जिस व्यक्ति से लाभ हो उसका गुस्सा भी सहना पड़ता है।

161
Q

दुविधा में दोनों गए माया मिली न राम।

A

दुविधायुक्त स्थिति में कुछ भी फल लाभ संभव नहीं होता।

162
Q

दूर के ढोल सुहावने होते हैं।

A

दूर से वस्तुएँ अच्छी लगती हैं।

163
Q

देसी कुतिया, विलायती बोली।

A

किस अन्य की नकल करना।

164
Q

दूध का जला, छाछ को भी फूँक-फूँक कर पीता है।

A

एक बार ठोकर खाया व्यक्ति आगे विशेष सावधानी बरतता है।

165
Q

धोबी का कुत्ता न घर का न घाट का।

A

दो पक्षों से जुड़ा व्यक्ति कहीं का नहीं रहता।

166
Q

धोलबिन पर बस न चला तो गधे के कान उमेड़े।

A

सामर्थ्यवान पर बस न चलने पर कमजोर पर रौब जमाना।

167
Q

धोबी रोवे धुलाई को, मियाँ रोवे कपड़े को।

A

अपने-अपने नुकसान की चिंता करना।

168
Q

धन का धन गया, मीत की मीत गई।

A

उधार के कारण धन व मित्रता दोनों नहीं रहते।

169
Q

न नौ मन तेल होगा, न राधा नाचेगी।

A

अनहोनी शर्त रखना।

170
Q

नक्कारखाने में तूती की आवाज।

A

बड़ों के बीच छोटे आदमी की बात कोई नहीं सुनता है।

171
Q

न सावन सूखें न भादों हरी।

A

सदैव एकसी स्थिति।

172
Q

न रहेगा बाँस न बजेगी बाँसुरी।

A

झगड़े के कारण को समाप्त करना।

173
Q

नाच न जाने आँगन टेढ़ा।

A

स्वयं के दोष छिपाने हेतु दूसरों में कमियाँ ढूँढना।

174
Q

नेकी कर कुए में डाल।

A

भलाई करके भूल जाना।

175
Q

नेकी और पूछ-पूछ।

A

अच्छे कार्य के लिए किसी से पूछने की आवश्यकता नहीं होती।

176
Q

नीम हकीम खतरे जान।

A

अधूरा ज्ञान हानिकारक होता है।

177
Q

नौ नकद तेरह उधार।

A

भविष्य में बड़े लाभ की आशा की अपेक्षा आज होनेवाला छोटा काम बेहतर होता है।

178
Q

नौ दिन चले अढ़ाई कोस।

A

अधिक समय में थोड़ा काम।

179
Q

नौ सौ चूहे खाय बिल्ली हज को चली।

A

बड़ा पाप करने के बाद पुण्य का ढोंग करना।

180
Q

न ऊधों का लेना न माधो का देना।

A

किसी से कोई मतलब न होना।

181
Q

नमाज छोड़ने गए रोजे गले पड़े।

A

छोटे कार्य से मुक्ति के प्रयास में बड़े कार्य का जिम्मा गले पड़ना।

182
Q

नानी के आगे ननिहाल की बातें।

A

जानकार को जानकारी देना।

183
Q

नाई की बारात में सब ठाकुर ही ठाकुर।

A

सभी बड़े बन बैठते हैं तो काम नहीं हो पाता है।

184
Q

नाम बड़े और दर्शन छोटे।

A

प्रसिद्धि अधिक किंतु गुण कम।

185
Q

पढ़े तो हैं किंतु गुणे नहीं।

A

शिक्षित किंतु अनुभवहीन।

186
Q

पराया घर थूकने का भी डर।

A

दूसरों के घर हर बात का संकोच रहता है।

187
Q

पाँचों उँगलियाँ बराबर नहीं होती।

A

सब लोग एक से नहीं होते।

188
Q

पशीन सपनाई सुख नाहीं।

A

पराधीनता में सुख नहीं होता।

189
Q

प्यास से फजी भयो डेयो-डेयो जाय।

A

छोटा आदमी बड़ा पद पाकर इतराता है।

190
Q

फटा दूध और फटा मन फिर नहीं मिलता।

A

एक बार मनभेद होने पर पुनः पहले-सा मेल नहीं होता।

191
Q

फरा सो झरा, बरा सो बुझाना।

A

जो फला है वह झड़ेंगा और जला हुआ भी बुझेंगा (सभी का अंत निश्चित है)।

192
Q

पर उपदेश कुशल बहुतेरे।

A

दूसरों को उपदेश देने में सब चतुर होते हैं।

193
Q

बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद।

A

मूर्ख व्यक्ति अच्छी वस्तु की महत्ता नहीं जानता है।

194
Q

बकरे की माँ कब तक खेर मनायेगी।

A

जिसे कष्ट पाना है वह ज्यादा समय तक नहीं बच सकता।

195
Q

बासी बचे न कुत्ता खाय।

A

जरूरत अनुसार कार्य करना।

196
Q

बिल्ली के भाग से छींका टूटना।

A

बिना प्रयास अयोग्य व्यक्ति को श्रेष्ठ वस्तु मिलना।

197
Q

बोया पेड़ बबूल का तो आम कहाँ से होय।

A

बुरे काम का अच्छा परिणाम संभव नहीं।

198
Q

बैठे से बेगार भली।

A

फालतू या बेकार बैठने की अपेक्षा सामान्य (कम लाभ) कार्य करना भी बेहतर होता है।

199
Q

बारह बरस पीछे घूरे के भी दिन फिरते हैं।

A

एक न एक दिन सभी के जीवन में अच्छे दिन आते हैं।

200
Q

बाप भला न भैया, सबसे बड़ा रुपैया।

A

रिश्तों की अपेक्षा पैसों को अहमियत देना।

201
Q

बाप ने मारी मेंढकी बेटा तीरंदाज।

A

परिवार के मुखिया के अयोग्य होने पर भी संतान का योग्य होना।

202
Q

बिच्छू का मंतर न जाने, साँप के बिल में हाथ डाले।

A

योग्यतान के अभाव में भी कठिन कार्य का जिम्मा लेना।

203
Q

भेड़ की लात घूटने तक।

A

कमजोर व्यक्ति किसी को अधिक नुकसान नहीं कर सकता।

204
Q

भागते भूत की लंगोटी ही सही।

A

जिससे कुछ मिलने की अपेक्षा न हो उससे थोड़ा भी मिल जाए तो बेहतर।

205
Q

भूखे भजन न होय गोपाला।

A

भूख के समय दूसरा कुछ ठीक नहीं लगता।

206
Q

भैंस के आगे बीन बजाए, भैंस खड़ी पगुराय।

A

मूर्ख के सम्मुख ज्ञान की बातें करना व्यर्थ है।

207
Q

मन चंगा तो कठौती में गंगा।

A

मन की पवित्रता महत्वपूर्ण है।

208
Q

मरता क्या न करता।

A

मुसीबत में व्यक्ति गलत कार्य भी करता है।

209
Q

मान न मान मैं तेरा मेहमान।

A

जबरदस्ती गले पड़ना।

210
Q

मियाँ बीवी राजी तो क्या करेगा काजी।

A

दो लोगों में आपसी प्रेम है तो तीसरा रोक भी नहीं सकता।

211
Q

मुख में राम, बगल में छुरी।

A

मित्रता का दिखावा कर मन में धूर्तता रखना।

212
Q

मन के हारे हार है, मन के जीते जीत।

A

उत्साह से ही सफलता संभव होती है।

213
Q

मेरी बिल्ली मुझसे ही म्याऊं।

A

आश्रयदाता पर रौब जमाना।

214
Q

मन के लड्डूओं से पेट नहीं भरता।

A

केवल कल्पनाओं से तृप्ति संभव नहीं होती है।

215
Q

मुल्ला की दौड़ मस्जिद तक।

A

सीमित सामर्थ्य होना।

216
Q

मन भावै मुँड हिलावै।

A

मन से चाहना किंतु ऊपर से दिखावे के लिए मना करना।

217
Q

मुँह माँगी मौत नहीं मिलती।

A

अपनी इच्छा से ही सब कुछ नहीं होता।

218
Q

यह मुँह और मसूर की दाल।

A

हैसियत से बढ़कर बात करना।

219
Q

यथा नाम तथा गुण।

A

नाम के अनुसार गुण होना।

220
Q

यथा राजा तथा प्रजा।

A

जैसा स्वामी वैसा सेवक।

221
Q

रस्सी जल गई पर बल न गया।

A

प्रतिघात चले जाने पर भी घमंड बने रहना।

222
Q

रोज कुआँ खोदना, रोज पानी पीना।

A

प्रतिदिन कमाकर जीवन यापन करना।

223
Q

लकड़ी के बल बंदर नाचे।

A

भय के कारण काम करना।

224
Q

लोहे को लोहा ही काटता है।

A

बुराई को बुराई से ही जीता जा सकता है।

225
Q

लातों के भूत बातों से नहीं मानते।

A

दुष्ट व्यक्ति भय से ही मानते हैं मात्र कहने से नहीं।

226
Q

लिखे ईंसा पढ़े मूसा।

A

ऐसी लिखावट जिसे पढ़ा न जा सके।

227
Q

विनाशकाले विपरीत बुद्धि।

A

प्रतिकूल समय में विवेक भी जाता रहता है।

228
Q

विधि का लिखा कोई मिटा नहीं सका।

A

भाग्य का लिखा कोई बदल नहीं सकता।

229
Q

साँप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे।

A

बिना किसी नुकसान के कार्य पूर्ण करना।

230
Q

साँप छछूंदर की गति होना।

A

दुविधा में होना।

231
Q

सावन के अंधे को हरा ही हरा दिखाई दे।

A

सुख-वैभव में पलते व्यक्ति को दूसरों के कष्टों का अनुभव नहीं हो सकता।

232
Q

सब धान बाईस पसेरी।

A

अच्छे-बुरे की परख न कर सबको समान समझना।

233
Q

समरथ को नहीं दोष गुसाईं।

A

सामर्थ्यवान व्यक्ति को कोई भी कुछ नहीं कहता।

234
Q

सईयाँ भए कोतवाल तो अब डर काहे का।

A

अपने व्यक्ति के बड़े पद पर होने पर लोग उसका अनुचित लाभ उठाते हैं।

235
Q

सहज पके सो मीठा होय।

A

उचित प्रक्रिया से किया गया कार्य ही ठीक होता है।

236
Q

हल्दी लगे न फिटकरी रंग चोखा आ जाए।

A

बिना खर्च के कार्य का अच्छी तरह से संपादन करना।

237
Q

हथेली पर सरसों नहीं उगती।

A

प्रत्येक कार्य पूर्ण होने में एक निश्चित समय लगता है।

238
Q

हाथ कंगन को आरसी क्या।

A

प्रत्यक्ष को प्रमाण की आवश्यकता नहीं होती।

239
Q

हाथी के दाँत खाने के और तथा दिखाने के और।

A

कपटपूर्ण व्यवहार या करनी-करनी में अंतर होना।

240
Q

होनहार बिरवान के होत चीकने पात।

A

महान व्यक्तियों के श्रेष्ठ गुणों के लक्षण बचपन से ही दिखाई पड़ने लगते हैं।

241
Q

हाथ सुगंधित बगल कतरनी।

A

छल-कपट का व्यवहार।