दुख का अधिकार Flashcards
मनुष्य के जीवन में पोशाक का क्या महत्व है?
मनुष्य के जीवन में पोशाक का सर्वाधिक महत्त्व है। पोशाक ही मनुष्य का समाज में दर्जा अथवा अधिकार निर्धारित करती है। पोशाक ही व्यक्ति को ऊँच - नीच की श्रेणी में वर्गीकृत करती है। बहुत बार अच्छी पोशाकें व्यक्ति की किस्मत के बंद दरवाज़े खोल देती है, सम्मान दिलाती है।
पोशाक हमारे लिए कब बंधन और अड़चन बन जाती है?
जब हमारे सामने कोई ऐसी स्थिति आती है की हमें किसी दुःखी व्यक्ति के साथ सांत्वना प्रकट करनी होती है , लेकिन उसे छोटा समझ कर उससे बात करने में हिचकिचाते हैं। उसके साथ सान्त्वना तक प्रकट नहीं कर पाते। हमारी पोशाक उसके करीब जाने में तब बंधन और अड़चन बन जाती है।
लेखक उस स्त्री के रोने का कारण क्यों नहीं जान पाया?
लेखक की पोशाक, रोने के कारण को जान पाने के बीच अड़चन थी। वह फुटपाथ पर बैठकर उससे पूछ नहीं सकता था। इससे उसकी प्रतिष्ठा को ठेस पहुँचती। इस वजह से वह स्त्री के रोने का कारण नहीं जान पाया।
भगवाना अपने परिवार का निर्वाह कैसे करता था?
भगवाना की शहर के पास डेढ़ बीघा भर ज़मीन थी। वह उसमें ख़रबूज़े बो कर अपने परिवार का निर्वाह करता था। खरबूजे की डालियों को बाज़ार तक स्वयं पहुँचा कर वह खुद सौदे के पास बैठ जाता था।
लड़के की मृत्यु के दूसरे ही दिन बुढ़िया खरबूज़े बेचने क्यों चल पड़ी?
बुढ़िया बहुत गरीब थी। लड़के की मृत्यु पर घर में जो कुछ था सब कुछ खर्च हो गया लड़के के छोटे-छोटे बच्चे भूख से परेशान थे, बहू को तेज़ बुखार था ईलाज के लिए भी पैसा नहीं था। इन्ही सब कारणों से वह दूसरे ही दिन खरबूजे बेचने चल पड़ी ।
बुढ़िया के दुख को देखकर अपने पड़ोस की संभ्रांत महिला की याद क्यों आई?
बुढ़िया के दुख को देखकर लेखक अपने पड़ोस की संभ्रांत महिला को याद करता है, उसके बेटे का भी देहांत हो गया था और बुढ़िया के बेटे का भी देहांत हो गया था ,लेकिन दोनों के शोक मनाने का तरीका अलग - अलग था। धन की कमी की वजह से बेटे के देहांत के अगले ही दिन बुढ़िया को बाज़ार में खरबूजे बेचने आना पड़ता है। वह घर बैठकर रो नहीं सकती थी। मानो उसे अपना दुःख मनाने का हक़ ही न था। पड़ोस के लोग उसकी मजबूरी को अनदेखा कर, उस बुढ़िया को बुरा - भला कहते हैं। जबकि संभ्रांत महिला के पास बहुत समय था। वह ढाई महीने से बिस्तर पर थी, डॉक्टर हमेशा सिरहाने बैठा रहता था। लेखक दोनों की तुलना करना चाहता है, इसलिए उसे संभ्रांत महिला की याद आयी।
बाजार के लोग खरबूजे बेचने वाली स्त्री के बारे में क्या कह रहे थे? अपने शब्दों में लिखिए।
धन की कमी की वजह से बेटे के देहांत के अगले ही रोज़ बुढ़िया को खरबूज़े बेचने बाज़ार आना पड़ता है। बाज़ार के लोग उसकी परिस्थिति को अनदेखा करते हुए उसे बुरा - भला कहते हैं , कोई घृणा से देखकर बातें कह रहा था , कोई उसकी नीयत को कोस रहा था , कोई रोटी के टुकड़े पर जान देने वाली कहता , कोई कहता इसके लिए रिश्तों का कोई महत्त्व नहीं है , दूकान वाला कहता यह धर्म ईमान बिगाड़कर अधर्म फैला रही है। इसका खरबूज़े बेचना सामाजिक रूप से गलत है। इन दिनों उसका सामान कोई भी छूना तक नहीं चाहता था।
पास-पड़ोस की दुकानों से पूछने पर लेखक को क्या पता चला?
पास-पड़ोस की दुकानों से पूछने पर पता चला कि उसका 23 बरस का जवान लड़का था। घर में उसकी बहू और पोता-पोती थे। लड़का शहर के पास डेढ़ बीघा भर जमीन में खेती करके अपने परिवार का निर्वाह करता था। लड़का परसों सुबह मुँह-अंधेरे बैलों में एक बैल खरीदने चुन रहा था। गीली मिट्टी को तराशते वक्त वह विषधर करते हुए एक ईंट पर लड़के का पैर पड़ा और सांप ने लड़के को डस लिया। इसके कारण उसकी मृत्यु हो गई।
लड़के को बचाने के लिए बुढ़िया माँ ने क्या-क्या उपाय किए?
लड़के को बचाने के लिए बुढ़िया ने वह सभी उपाय किए जो वह कर सकती थी। वह परेशान सी हो गयी। झाड़ - फूँक करवाने के लिए ओझा को ले आयी , सांप का ज़हर निकल जाए इसलिए नाग देवता की भी पूजा की , घर में जितना आटा अनाज था वह ओझा को दे दिया लेकिन दुर्भाग्य से बेटे को नहीं बचा सकी।
लेखक ने बुढ़िया के दुःख का अंदाज़ा कैसे लगाया?
लेखक ने बुढ़िया के दुख का अंदाजा लगाने के लिए पिछले साल अपने पड़ोस में पुत्र के मृत्यु का सान्निध्य देखा था, जिससे ग्रहण किया कि शोक प्रकट करने का अधिकार तथा अवसर दोनों था। परंतु यह बुढ़िया तो इतनी असहाय थी कि अपने पुत्र की मृत्यु का शोक भी मना सकती थी।
इस पाठ का शीर्षक ‘दुःख का अधिकार’ कहाँ तक सार्थक है? स्पष्ट कीजिए।
इस पाठ का शीर्षक ‘दुख का अधिकार’ पूरी तरह से सार्थक है, क्योंकि यह सिद्ध करता है कि दुख प्रत्येक व्यक्ति के परिस्थिति के अनुसार होता है। दुख का अधिकार सभी को है, परंतु बुढ़िया और संध्या महिला को इसका पूरा सम्मान नहीं। वे अपने पुत्रों को खोती हैं, परंतु संपन्न महिला के पास सहूलियत थी, समय था। इसलिए वह दुख मना सकी परंतु बुढ़िया गरीब थी। भूख से बिलखते बच्चों के लिए ऐसा काम करने के लिए निकलना पड़ा। उसके पास न सहूलियत थी, न समय इसलिए वह दुख मना सकी। उसे दुख मनाने का अधिकार नहीं था। इसलिए शीर्षक पूरी तरह से सार्थक है।
निम्नलिखित शब्दों के पर्याय लिखिए:
ईमान ………………..
बदन ………………..
अंदाज़ा ………………..
बेचैनी ………………..
गम ………………..
दर्ज़ा ………………..
ज़मीन ………………..
ज़माना ………………..
बरकत ………………..
ईमान - धर्म , विश्वास
बदन - शरीर , काया
अंदाज़ा - अनुमान , आकलन
बेचैनी - व्याकुलता , अकुलाहट
गम - दुःख , पीढ़ा
दर्ज़ा - श्रेणी , पदवी
ज़मीन - पृथ्वी , धरा
ज़माना - युग , काल
बरकत - लाभ , इज़ाफा
निम्नलिखित उदाहरण के अनुसार पाठ में आए शब्द-युग्मों को छाँटकर लिखिए:
उदाहरण: बेटा-बेटी
खसम - लुगाई , पोता - पोती , झाड़ना -फूँकना,
छन्नी - ककना , दुअन्नी - चवन्नी।
पाठ के संदर्भ के अनुसार निम्नलिखित वाक्यांशों की व्याख्या कीजिए:
बंद दरवाज़े खोल देना, निर्वाह करना, भूख से बिलबिलाना, कोई चारा न होना, शोक से द्रवित हो जाना।
• बंद दरवाजे खोल देना - उन्नति में रुकावट के तत्व हटने सेबंद दरवाजे खुल जाते हैं।
• निर्वाह करना - परिवार की रोजी रोटी चलाना।
• भूख से बिलबिलाना - अत्यधिक भूख लगना।
• कोई चारा न होना - कोई और उपाय न होना।
• शोक से द्रवित हो जाना - अन्य लोगों का दुःख देख भाव विभोर हो जाना।
निम्नलिखित शब्द-युग्मों और शब्द-समूहों का अपने वाक्यों में प्रयोग कीजिए:
(क) छन्नी-ककना अढ़ाई-मास पास-पड़ोस
दुअन्नी-चवन्नी मुँह-अँधेरे झाड़ना-फूँकना
(ख) फफक-फफककर बिलख-बिलखकर
तड़प-तड़पकर लिपट-लिपटकर
(क)
- छन्नी-ककना - गरीब महिला ने अपना छन्नी-ककना बेचकर बच्चों को पढ़ाया - लिखाया।
- अढ़ाई-मास - वह कश्मीर अढ़ाई-मास के लिए गया है।
- पास-पड़ोस - दुःख - सुख के सच्चे साथी पास-पड़ोस के लोग ही होते हैं।
- दुअन्नी-चवन्नी - आजकल दुअन्नी-चवन्नी का कोई महत्व ही नहीं है।
- मुँह-अँधेरे - वह मुँह-अँधेरे ही काम पे चला जाता है।
- झाड़ना-फूँकना - आज के ज़माने में भी कई लोग झाड़ने - फूँकने पर विश्वास करते हैं।
(ख)
- फफक-फफककर - भूख के कारण लोग फफक-फफककर रो रहे हैं।
- बिलख-बिलखकर - अपने पुत्र की मृत्यु पर वह बिलख-बिलखकर रो रही थी।
- तड़प-तड़पकर - अंधविश्वास और ईलाज न होने की वजह से सांप के काटे जाने पर लोग तड़प-तड़पकर मर जाते हैं।
- लिपट-लिपटकर - कई दिनोंबाद सहेलियां लिपट-लिपटकर मिलीं।